मंदिर में भजन गाने से क्या मिलेगा,
झूठी भक्ती दिखाने से क्या मिलेगा !
अंदर भरा है मैल #नफ़रत का इतना,
कि रोज़ गंगा नहाने से क्या मिलेगा !
निहारता है सब कुछ वो ऊपर बैठ कर,
उससे सच को छिपाने से क्या मिलेगा !
भुलाया खुशियों में बेकार समझ कर उसे,
अब दुखों में याद आने से क्या मिलेगा !
भेज था हमें तो पैग़ामे #मोहब्बत दे कर,
उसकी मर्जी भूल जाने से क्या मिलेगा !
जो हर जगह मौजूद है हर पल हर घड़ी,
उसके लाखों घर बनाने से क्या मिलेगा !
ज़रा झांक कर देखो अपना गिरेवाँ दोस्त,
कमियाँ औरों की बताने से क्या मिलेगा !!!
क्यों फिर रहे हो यूं ही, ये पुराने ज़ख़्म लिए हुए,
जलते रहोगे कब तक, अपनों की शरम लिए हुए !
अब न रहा दुनिया में कोई साफ़ दिल मेहरवान,
कब तक जियोगे यक़ीन में, झूठी कसम लिए हुए!
क्यों क़ैद हो तुम उन ज़फाओं की यादों में दोस्त,
कैसे रहोगे दुनिया में, उल्फ़त का धरम लिए हुए!
वो वक़्त अब गुज़र गया जिसे ढूंढते हो दर ब दर,
जी सकोगे कैसे अब, अपना ईमानो करम लिए हुए !
निकाल फैंको ग़ुबार सारे जो सजा रखे हैं सालो से,
वरना न चल सकोगे दोस्त, इतना वहम लिए हुए !
जूनून-ए-मोहब्बत, बरक़रार है आज भी,
इस #दिल को उनका, इंतज़ार है आज भी !
बहुत देखे हैं हमने हारे हुए दिल वाले भी
मगर अपना तो #दिल, बेक़रार है आज भी !
मुश्किलों का क्या आती ही है #ज़िन्दगी में,
इन हादसों से अपना तो, क़रार है आज भी !
नफरतों का क्या कोई भी कर ले किसी से,
पर #मोहब्बत की सज़ा, वज़नदार है आज भी !
न करो अफसोस दुनिया में आने का दोस्त ,
इंसानियत की दुनिया, तलबगार है आज भी !!!
दिल में घुसते हैं लोग कैसे, अब समझ आया ,
मुखौटे बदलते हैं लोग कैसे, अब समझ आया !
मूर्ख है ये #दिल कि समझता है खुदा सबको,
अपने उगलते हैं ज़हर कैसे, अब समझ आया !
कमाल है कि दुनिया भी ठगती है बड़े अदब से,
पचता है माल गैरों का कैसे, अब समझ आया !
न आता है समझ कुछ भी कोरी बातों से यारो,
लोग घुमा देते हैं #दिमाग कैसे, अब समझ आया !
इन झूठी आशा दिलासाओं में न फंसिए दोस्तो,
ये दुनिया सताती है हमें कैसे, अब समझ आया !!!
देखा हाल गुल का, तो बदहवास हो गया ,
काँटों का दख़ल देखा, मन उदास हो गया !
यूं तो आम था उस राह से गुज़रना अपना,
मगर आज का गुज़रना, तो ख़ास हो गया !
देखा तितलियों को उलझते हुए काँटों से,
अब दुष्टता का हर तरफ ही, वास हो गया !
बुलाया था फूल ने देकर दोस्ती का वास्ता,
मगर फूल भी दुष्ट काँटों का, ख़ास हो गया !
न आता कोई अब किसी की मदद करने ,
दुनिया भी बहरी हो गयी, अहसास हो गया !
न रही अब शराफ़त बेच डाला ईमान भी,
शर्म जो बाक़ी थी, उसका भी नाश हो गया !