तुम तो बड़े ज़ालिम, दिले नाशाद निकले ,
समझा मासूम परिंदा, पर सय्याद निकले !
सोचा कि तड़पता होगा तुम्हारा भी दिल,
मगर तुम तो दिल से, निरे फौलाद निकले !
हंसी ख्वाबों को सजाया था जतन से हमने,
मगर ये किस्मत के लेखे, नामुराद निकले !
लगा दीं तोहमतें हज़ार तुमने हम पर दोस्त,
पर हम पर लगे इल्ज़ाम, बेबुनियाद निकले !
हम तो आये थे इधर, खुशियों की तलाश में
मगर जिधर भी निकले, हो के बर्बाद निकले !!!
अपने जज़्बात किसी को, हम बताएं कैसे
अपने दिल 💗 की ये धड़कनें, हम सुनाएँ कैसे !
अंदर छुपा रखा है हमने प्यार का समंदर,
चीर कर अपने दिल को 💔, हम दिखाएँ कैसे !
कोई तो बताये हमको क्या खता है हमारी,
अपनी वफ़ाओं का मातम, हम मनाएं कैसे !
अच्छा सिला दिया है मोहब्बत का हमको,
इन झूठी तोहमतों से दामन, हम बचाएं कैसे !
अब झूठ ही बिकता है इधर धड़ल्ले से दोस्त,
अब तो सच के साथ जीवन, हम बिताएं कैसे ! 😔 🙁
जीते रहे हैं ज़िन्दगी, किसी का उधार समझ कर ,
निभाते रहे हम रिश्ता, किसी को प्यार समझ कर !
देते रहे सबूत हम अपनी बेगुनाही का हर समय,
पर भुला दिया उसने, हमें गुज़री बहार समझ कर !
बदल गया है सब कुछ ये तो किस्मत की चाल थी,
मगर नज़रें घुमा लीं उसने, हमें बदकार समझ कर !
न पढ़ सके हम उसके चेहरे की इबारत को दोस्तो,
हमने तो दे दिया था दिल, अपना ऐतबार समझ कर !
अब तो ये मोहब्बत भी एक बिकाऊ चीज़ है दोस्त ,
लोग कर देते हैं माल वापस, उसे बेकार समझ कर !
आता है बुरा वक़्त, तो उजाले भी डराने लगते हैं ,
यारो चूहे भी शेर को, अपना दम दिखाने लगते हैं !
अब कहाँ हैं वो लोग जो होते थे शरीक हर ग़म में,
अब तो दिल ही दिल, लोग खुशियां मनाने लगते हैं !
गर लेनी हो सलाह तो कही जाने की ज़रुरत क्या है,
इधर तो मुफ्त में लोग, अपनी अक्ल लगाने लगते हैं !
भुगतना है खुद को ही तो किसी को तंग क्या करिये,
लोग तो ज़रा सी बात का भी, बतंगड़ बनाने लगते हैं !
आता है अगर पतझड़ भी तो बहारें भी आती हैं दोस्त,
मगर बेसब्र इतने हैं लोग, कि कोहराम मचाने लगते हैं !
गर सताएं उनकी यादें, तो क्या करूँ,
गर चाहूँ उनसे मिलना, तो क्या करूँ!
हो सकती है मुलाक़ात ख्वाबों में बस,
मगर न सोएं मेरी आँखें, तो क्या करूँ!
कहते हैं लोग कि खुश रहा करो दोस्त,
मगर न मचले मेरा दिल, तो क्या करूँ!
कहते हो कि भूल जाओ गुज़रा ज़माना,
पर न निकलें दिल से बातें, तो क्या करूँ!
अरमां तो हैं मेरे भी कि खुश रहा जाये,
मगर दिल से न निकलें ग़म, तो क्या करूँ!
ये चाहत है मेरी कि न हो दुश्मनी उनसे,
मगर न बदले उनकी, आदत तो क्या करूँ!!!