न करनी है तुम्हें मदद, तो खुलेआम मत करिये,
मगर किसी की इज़्ज़त का, क़त्लेआम मत करिये !
ये दौलतें ये शौहरतें कभी साथ नहीं जातीं दोस्त,
इस बेकार की चीज पर, इतना गुमान मत करिये !
आता है तुम्हारे दर पे कोई तुम्हें अपना समझ कर,
यारो उसको ज़लील करने का, इंतज़ाम मत करिये !
ख़ुदा भी न कर सका कुछ भी मदद के बिना,
तुम तो बन्दे हो उसके, ज्यादा अभिमान मत करिये !!!
सब कुछ लुटा कर, कुछ मिला तो क्या मिला,
अरे इज़्ज़त गवां कर, कुछ मिला तो क्या मिला !
सारी #ज़िन्दगी तो गुज़ार दी बेचारगी में हमने,
अपनी मौत पा कर, कुछ मिला तो क्या मिला !
शराफत की ज़िन्दगी न जीने दी किसी ने भी,
यारो आँखें दिखा कर, कुछ मिला तो क्या मिला !
देखा है बड़े गौर से ईमान ओ करम अपनों का,
गैरों से रिश्ते जोड़ कर, कुछ मिला तो क्या मिला !!!
कभी न कभी तो, ये वक़्त भी आना ही था,
जो आया था उसे तो, एक दिन जाना ही था !
क्यों लगा बैठे थे तुम एक मुसाफिर से दिल,
उसे तो अपनी, #मंज़िल की ओर जाना ही था !
होती नहीं ये दूरियां राहों की असीम यारो,
कभी न कभी तो छोर, उनका आना ही था !
कुछ भी न साथ लेकर गया वो जाने वाला,
उसे सब कुछ तो इधर, छोड़ जाना ही था !
बूढ़े दरख़्तों से आँधियों की भला क्या यारी,
कभी न कभी तो जड़ से, उखड जाना ही था !
क्यों ग़मज़दा हो देख अपने गुलशन को दोस्त,
इसमें कभी न कभी तो, पतझड़ आना ही था !!!
गिर के फिर संभलने का, मज़ा ही कुछ और है ,
अपने पैरों से चलने का, मज़ा ही कुछ और है !
प्यार में चोट खाने का अफसोस न करो दोस्त, #मोहब्बत में बिछड़ने का, मज़ा ही कुछ और है !
ज़िन्दगी जीने के लिए कोई तिकड़म न लगाइये,
सिर्फ अपनी तरह जीने का, मज़ा ही कुछ और है !
अपने अमोल रिश्तों को दौलत से न तौलिये कभी,
अपनों के आगे झुकने का, मज़ा ही कुछ और है !
भरी पड़ी है ये दुनिया अनेकों लम्पटों से दोस्त ,
उनसे ईमान बचा रखने का, मज़ा ही कुछ और है !
कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
शराफ़त की औकात कुछ भी नहीं जमाने में,
बदमाशियों के आगे, सब कुछ अटक जाता है !
अजीब सा आलम है इस बेसब्र शहर का यारो,
यहां ज़रा सा मसला भी, दिलों में खटक जाता है !
लोग बिछाते हैं जाल कुछ इस कदर फरेबों का,
कि #ज़िन्दगी का सफ़र, अधर में अटक जाता है !
ये दुनिया वो दुनिया नहीं जिसकी तलाश है हमें ,
इसमें घुसते ही प्राणी का, साहस ठिठक जाता है !!!