Shanti Swaroop Mishra

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Man ko na bhatakne do

हसीन राहों को देखा तो, बस चलता चला गया,
न कुछ सोचा न समझा, बस बढ़ता चला गया !
डर गया था देख कर अपनी मंज़िल के रास्ते,
बस जिधर भीड़ देखी उधर चलता चला गया !
पता न था कि वो तो धोखे के नज़ारे थे सारे,
बे-मंज़िल के सफर में, अँधेरा बढ़ता चला गया !
अपनी राह चलता तो मिल जाती मंज़िल शायद,
पर बे-खुदी की हवाओं में बस उड़ता चला गया !
पानी है मंज़िल तो मन को न भटकने दो यारो,
रोओगे सोच कर कि, वक़्त सरकता चला गया !

Kashak aaj bhi taza hai

कंकरीली राहों की कशक, आज भी ताज़ा है,
गरम रेत की वो तपिश, आज भी ताज़ा है !
फटी बिबाइयों का वो कशकता खामोश दर्द,
और कांटों की वो चुभन, आज भी ताज़ा है !
रातों में जग कर अपनी फसलों का पहरा,
और माघ की वो ठिठुरन, आज भी ताज़ा है !
जेठ में लू की लपकती भयानक वो लपटें,
और पशीने की वो लथपथ, आज भी ताज़ा है !
बौराये आमों का तालाब के किनारे बगीचा,
कोकिल का वो मधु कलरव, आज भी ताज़ा है !
मुद्दत गुज़र गयी कमल दल देखे बिना हमें,
मगर दिल में उनकी महक, आज भी ताज़ा है !
वर्षों गुज़र गए घर से बेघर हुए हमको यारो,
मगर दिल में गांव की हवा, आज भी ताज़ा है !

Khushi ki na khushi humko

न तो ग़मों का गम है, न ख़ुशी की ख़ुशी हमको !
भट्टी में पका चुकी है खूब, ये ज़िन्दगी हमको !
या ख़ुदा वो वक़्त मत लाना मुकद्दर में हमारे,
कि कभी अपने ही सबब से, हो शर्मिंदगी हमको !
इन आंसुओं की कीमत नहीं जानती ये दुनिया,
अब तो इनको देख कर ही, आती है हंसी हमको !
हर मोड़ पर तकती रहीं दुनियां की बेरहम नज़रें,
हर कदम पर बस रुलाती रही, ये ज़िन्दगी हमको !
न लो दर्द ए दिल किसी और की खातिर दोस्त,
वर्ना तो छोड़ देगी मंझधार में, ये ज़िन्दगी हमको !

Waqt ne gulam bna diya

वक़्त ने मुझे तांगे का घोड़ा बना दिया,
आँखों में पट बांध आधा अंधा बना दिया !
दुनिया घूम ली पर दुनिया न देख पाया,
उसने अपने ईशारे का गुलाम बना दिया !
इक लीक पर चलता रहा मैं रात दिन,
दुनिया से एक दम अन्जान बना दिया !
अब बंधा हूँ एक खूंटे से एक मुद्दत से,
हौसला अब भी है पर नाकाम बना दिया !!!

Zakhmon Ke Nishan Baaki Hain

दुनिया के दिए ज़ख्मों के, निशान अभी बाकी हैं,
हम जी रहे हैं इसलिए कि, अरमान अभी बाकी हैं !
देख कर हमें बदल देते हैं लोग अपना रास्ता अब,
शायद आते हैं वो ये देखने कि, प्राण अभी बाकी हैं !
छोड़ देते ये शहर ये गलियां सदा के लिए हम तो,
पर क्या करें कुछ लोगों के, अहसान अभी बाकी हैं !
वैसे लुट तो चुके हैं हम इस दुनिया के बाजार में,
पर घर में मेरी यादों के कुछ, सामान अभी बाकी हैं !