जो भी आता है, वो जीने का हुनर बता जाता है,
ज़िन्दगी के हर पहलू पर, उपदेश सुना जाता है !
कैसे कहें कि ज़िन्दगी अभी अधूरी है मेरे दोस्त,
वरना #ज़िन्दगी जीना, हर किसी को आ जाता है !
ये तो रास्ते के कांटे हैं जो रोक देते हैं सफर को,
वरना तो राह चलना, हर किसी को आ जाता है !
इस पेट की खातिर मज़बूर है ये आदमी ,
वर्ना तो आराम करना, हर किसी को आ जाता है !
कभी सपनों को सजाने में, उम्र गुज़र जाती है,
कभी रिश्तों को बचाने में, उम्र गुज़र जाती है !
उजड़ने के लिए तो बस एक लम्हा काफी है,
मगर उस घर को बनाने में, उम्र गुज़र जाती है !
कोई तो खेलता है लाखों करोड़ों की दौलत में,
तो किसी की घर चलाने में, उम्र गुज़र जाती है !
आ जाते हैं ग़म बिन बुलाये मेहमान की तरह.
मगर ज़रा सी ख़ुशी लाने में, उम्र गुज़र जाती है !
वक़्त नहीं लगता अपनी इज़्ज़त गंवाने में दोस्त,
मगर यही इज़्ज़त बनाने में, उम्र गुज़र जाती है !!!
यूं ज़िन्दगी को, समझने से तुम्हें क्या मिलेगा,
उस से खामखा, उलझने से तुम्हें क्या मिलेगा !
ख़ुशी से जी लो जितना भी लिखा है नसीब में,
यूं ही दिल में, गुबार भरने से तुम्हें क्या मिलेगा !
जो दिया है ख़ुदा ने बस सब्र कर उतने पे यार,
यूं हर चीज़ पर, मर मिटने से तुम्हें क्या मिलेगा !
दुनिया में वैसे भी क्या कमी है ग़मों की दोस्त,
अपने आप से ही, यूं लड़ने से तुम्हें क्या मिलेगा !
मिल जाये यूं ही सब तो ख़ुदा की क्या ज़रुरत,
सोचो, उसके खिलाफ जाने से तुम्हें क्या मिलेगा !
गर आम मीठे है तो जी भर के खा जाओ दोस्त ,
यूं ही बेकार में, उन्हें गिनने से तुम्हें क्या मिलेगा !
ऐ दोस्त, सहारा औरों का तकना छोड़ दे,
ये तो वो कर देगा, ये यकीन करना छोड़ दे
हर राह में मिलते हैं यूं तो कांटे और पत्थर,
फिर भी ये दुनिया भला, कैसे चलना छोड़ दे
बदलना ही है तो खुद को बदल डालो दोस्त,
मगर ये दुनिया भला, कैसे बदलना छोड़ दे
अंधेरों से है दोस्ती तो किसी को क्या गिला,
मगर ये सूरज भला, कैसे निकलना छोड़ दे
निठल्लों को फुर्सत नहीं बातें बनाने से,
मगर मेहनती भला कैसे, काम करना छोड़ दे...
मज़ाक लगता है लोगों को, अब तो मेरा रोना भी,
सबसे बड़ी खता है मेरी, मेरा बदनसीब होना भी ! #दिल चीर कर रख दो मगर किसी को गम नहीं,
ये इक तरह की मौत है, अपना सम्मान खोना भी !
चढ़ा हो किसी की आँखों पे जब अहम का चश्मा,
लगता है कुछ अजीब सा, उसका मुख सलोना भी !
बिखर जाता है आदमी जब टूटता है उसका यक़ीं,
न होता उसे मयस्सर, वीरान रातों में खुद सोना भी !