यारा कहाँ गयी वो बात, वो ज़िंदा दिली तेरी
कैसे हुई ग़मों से बोझिल, प्यारी सी हंसी तेरी
कैसे हुआ मैला पूनम का ये चाँद या ख़ुदा,
मुझे क्यों लगती है धुंधलकी, ये चांदनी तेरी
तेरे हुश्न का तलबगार था कभी हर दीवाना,
क्यों रहने लगीं हैं ये महफ़िलें, अब सूनी तेरी
रुसबा हुए थे एक दिन हम भी तेरी गली में,
अक्सर याद आती है, उस दिन की बेबसी तेरी
हम वो फूल हैं जो खिलते हैं खिज़ाओं में भी,
ये दिल चाहता है देखना, बस चेहरे पे ख़ुशी तेरी...
अब तो ज़िन्दगी भी, उचाट हो चली है !
उम्र भी तो यारो, कुछ खास हो चली है !
उदास बागवां की तरह बैठा हूँ किनारे,
गुलशन में भी, एक अजीब खलबली है !
खार ही खार दिखते हैं हर तरफ यारो,
न कोई फूल दिखता है, न कोई कली है !
धीरे धीरे घिसट रही है ज़िंदगी,
और आगे और आगे, बस अँधेरी गली है !
हम तो उस आदमी को, यूं ही इंसान समझ बैठे,
उसकी मोहब्बत को ही, अपना ईमान समझ बैठे !
लुटा बैठे उसके लिए अपना सम्मान भी लेकिन,
उसके हर गम को हम, अपना सामान समझ बैठे !
समझाया ज़िंदगी का हमने फ़लसफ़ा एक दिन,
मगर वो नसीहत को, अपना अपमान समझ बैठे !
न आयी समझ उनके ज़िन्दगी की भूल भुलइयां,
वो तो #ज़िंदगी को, ख़रीदा हुआ गुलाम समझ बैठे !
अफ़सोस कि न समझ सके हम फ़ितरत उसकी
हमारी ग़लतफ़हमी थी, कि उसे इंसान समझ बैठे !
ये गुरूर है आदमी का जो सोचने नहीं देता ,
बड़ी ही टेढ़ी खीर है ये, जिसे तुम आसान समझ बैठे !
मेरी ज़िन्दगी का हर पल, एक किस्सा बन गया,
मेरा वज़ूद किसी और का, एक हिस्सा बन गया !
न जाने कितने आये गए इस ज़िंदगी के मेले में,
पर कुछ से उम्र तमाम का, एक रिश्ता बन गया !
किसी ने तो बना डाला ज़िंदगी को दोज़ख यारो,
तो कोई #ज़िन्दगी के लिए, एक फरिश्ता बन गया !
न थी इतनी आसान मेरी मंज़िले मक़सूद,
अल्लाह के करम से खुद ही, एक रस्ता बन गया !
हर दीवाने को, यूं ही बे-वफ़ा मत कहिए,
मोहब्बत तो खुदा है, इसे सज़ा मत कहिए !
मज़बूरियां भी तो हो सकती हैं किसी की,
यारो इतनी सी खता को, खता मत कहिए !
बेवफ़ा हो गया वो तो कोई नयी बात नहीं,
वो दिल से मेरा यार है, उसे बुरा मत कहिए !
परवाने जल जाते हैं प्यार की लौ में यूं ही,
यारो #मोहब्बत को, खेल तमाशा मत कहिए !
खुशियों का चमन तो बनता है मोहब्बतों से,
नफरतों को दोस्तो, अपना सहारा मत कहिए !