आरज़ू थी मेरे दिल की, कि कोई न मुझसे रूठे !
इस ज़िन्दगी में अपनों का, कभी न साथ छूटे!
करता रहा उम्र भर कोशिशें कुछ इस कदर मैं,
कि रिश्तों की मुलायम डोर, न ज़िन्दगी भर टूटे !
मगर अफसोस न समझा कोई मेरे दर्द को यारो,
गफ़लत की उड़ान में, न जाने कितनों के पर टूटे!
कानों में उड़ेले ज़हर ने ऐसा गुल खिलाया,
कि न जाने कितनों के घर टूटे कितनों के सर फूटे!
आफतों ने ज़िन्दगी को, इस कदर तोड़ दिया
कि ज़माने ने चाहा जिधर, उसे उधर मोड़ दिया
मतलब था जब तलक साथ निभाते रहे लोग,
जब मतलब निकल गया, तो अकेला छोड़ दिया
जानता हूँ ऐसे लोगों को बड़े ही करीब से मैं, कि
अपनी गलतियों का ठीकरा, औरों पे फोड़ दिया
यही तो दस्तूर है अब इस जमाने का दोस्तो, कि
न बना पाये घर अपना, तो औरों का तोड़ दिया...
अब तो #दिल भी क्या है एक खिलौना है बस,
जब तक चाहा खेला, जब चाहा उसको तोड़ दिया...
साजिशों की दुनिया में, सिर्फ चेहरे बदलते हैं!
हम जिधर भी जाते हैं, दुश्मन साथ चलते हैं!
क्यों करते हैं भरोसा हम अपनों पर इतना,
वक़्त पड़ने पे अक्सर, यही ईमान बदलते हैं!
देकर वफ़ा की दुहाई घुस तो आते हैं दिल में,
मगर यही ज़िन्दगी में फिर, ज़हर उगलते है!
ये शातिरों की बस्ती है ज़रा संभल के रहिये,
यहां तो पल पल शातिरों के, अंदाज़ बदलते हैं!
कुछ तो मेरी मोहब्बत का, सिला दीजिये
नफ़रत है तो फिर, खाक में मिला दीजिये
बस चाहत है कि कर लो इज़हारे मोहब्बत,
फिर चाहे तो हज़ार कमियां, गिना दीजिये
नहीं होती बर्दास्त तुम्हारी उदासियाँ हमसे,
गर खता है तो, क्यों न हमको सजा दीजिये
हर लम्हा रहते हो तुम हमारे दिल के क़रीब,
कभी ज़रुरत पेश आये तो, हमें इत्तला दीजिये
सुनते हैं सब कुछ मिलता है बाज़ार में ,
मंहगी ही सही पर हमें, #मोहब्बत दिला दीजिये <3
बिना रंजोगम के, ज़िन्दगी का मज़ा क्या होता
अगर न होती हार, तो जीत का मज़ा क्या होता
वही जानता है गुज़रती है जिसके दिल पे मगर,
न टूटते दिल, फिर मोहब्बत का मज़ा क्या होता
चाहत है सबको ही अपनी मंज़िल पाने की मगर,
न होते राह में कांटे, तो सफर का मज़ा क्या होता
ज़िन्दगी तो बस चाहतों का इक झमेला है,
न होती ये ख्वाहिशें, तो सपनों का मज़ा क्या होता !!!