मैं ख़राब हूँ, तो ज़माने को ख़राब कैसे कह दूँ
होश बाक़ी है अब तक, उसे शराब कैसे कह दूँ
मेरे #दिल को पता है अपनी औकात की हद,
फिर उसकी चाहतों को, बेहिसाब कैसे कह दूँ
जिंदगी भर करता रहा गलतियां ही गलतियां,
भला उसके वज़ूद को, यूं लाज़बाब कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी तो ख़ुदा की बख़्शी नेमत है,
मैं उसके दिए सामान को, अज़ाब कैसे कह दूँ...
जो डर के भागता है ज़िंदगी से, उसे हम क्या कहें
खुद लटक जाता है जो फंदे पे, उसे हम क्या कहें
भूल जाता है माँ बाप के प्यार का हर पल छिन,
कर देता है जो पागल शोक में, उसे हम क्या कहें
हर हाल में है जीना यहां ये तो ख़ुदा का हुक्म है,
जो उसकी भी नाफरमानी करे, उसे हम क्या कहें
मज़दूर से सीखो कि कैसे चलाता है घर अपना,
जो खुद को भी न संभाल पाये, उसे हम क्या कहें
जां गंवाता धरती मात पे उसे शहीद कहते हैं,
जो जननी को बिलखता छोड़ दे, उसे हम क्या कहें ?
लोगों को अपनी गलतियों का, अहसास नहीं होता
दूसरों की कमियां ढूढे बिना, समय पास नहीं होता
बस एक दूसरे की कमियां ढूढते रहते हैं हम,
अगर खूबियाँ ढूढते, तो दिलों में खटास नहीं होता..
ज़िन्दगी बिता दी मगर वो मोहब्बत नामिली
अपनों की बेरूखी से हमें कभी फुर्सत ना मिली
बस यूं ही गुज़र गयी ज़िन्दगी भागते दौड़ते
मगर कहीं पे सुकून की हमें वो दौलत न मिली
अफसोस लोगों ने जब कूड़ा समझ लिया तो
दुनिया के बाज़ार में हमें कोई कीमत न मिली
“मिश्र” देखते रहे यूं ही गुज़रे कारवां की गर्द
पर किसी के साथ जाने की वो हिम्मत न मिली