अपने वज़ूद को ही, अंधेरों में छुपा लिया हमने
कमज़ोर दिल को, इक पत्थर बना लिया हमने
सोच कर कि खुशियों को हमारी दरकार नहीं,
बस ग़मों को अपना, हमसफ़र बना लिया हमने
न बुझती थी शमा जिस घर की रातों में कभी,
अब खुद का दिल जलाकर, दीया बुझा दिया हमने
जब रहमत न मिली हमें अपनों से कभी दोस्तों,
तो उनको भुला, गैरों को अपना बना लिया हमने
कैसे थे क़ातिल चले गए अधमरा छोड़ कर "मिश्र",
उन्हीं ज़ख्मों को, निशान ए वफ़ा बना लिया हमने
ख़िज़ाँ के फूल में रंग अभी बाक़ी है
उम्र ढल चुकी उमंग अभी बाक़ी है
हसरतें न हो सकीं पूरी तो क्या हुआ
इस #ज़िन्दगी की जंग अभी बाक़ी है
न हुईं कभी उल्फतों की बारिशें, पर #दिल के दरिया में तरंग अभी बाक़ी है
कितनों ने साथ छोड़ा ग़म नहीं,
सफ़र में ख़ुदा का संग अभी बाक़ी है
कुछ यार पुराने रूठ गए
मिलने के वादे टूट गए
ऐसा मुकद्दर मिला हमें,
अंदर से बिलकुल टूट गए
ईमान नहीं है लोगों में,
अपना बन कर लूट गए
अपनों ने वो रंग दिखलाये,
सब नाते रिश्ते छूट गए
जो देखे थे हमने वचपन से,
वो ख्वाब सुहाने टूट गए
हम जिनके दिल में रहते थे,
वो #दिल भी हमसे रूठ गए
“मिश्र” नहीं कुछ पता आज,
क्यों दिल के छाले फूट गए...
ढूढने से क्या मिलेगा, मेरे इस वीरान घर में
छा गए हैं ग़मों के जाले, मेरे इस वीरान घर में
सुकून के पल खोजने आये हो तो माफ़ करना,
अब न कुछ ऐसा मिलेगा, मेरे इस वीरान घर में
जब छोड़ कर भागे थे हमको याद है वो दिन,
हर तरफ है दर्द उसका, मेरे इस वीरान घर में
क्यों चले आये हो तुम बाद मुद्दत के इधर,
अरमान मेरे जल चुके हैं, मेरे इस वीरान घर में
न समझो चुप हैं तो कोई गिला शिकवा नहीं,
सिसकती है शामो सहर मेरे इस वीरान घर में
बचा है बस ज़रा सा तेल चराग़े बदन में “मिश्र”,
फिर अँधेरा ही अँधेरा है, मेरे इस वीरान घर में...
ये ज़िन्दगी ऐसी भी होगी, ये कभी सोचा न था
हो जाएंगे यूं अपने पराये, ये कभी सोचा न था
कभी इठलाती थीं तितलियाँ गुलशन में मेरे,
खा जाएँगी उसको खिज़ाएँ, ये कभी सोचा न था
जाते हुए पैरों की आहटें सुनते रहे हम गुमसुम,
न देखेगा एक बार मुड़ कर, ये कभी सोचा न था
क्या होती है हद ज़फ़ाओं की पता न था हमको,
पर बन जायेगा वो अजनबी, ये कभी सोचा न था
बिना लिबास आये थे हम इस दुनिया में "मिश्र",
उस की चाह में इतना सफर, ये कभी सोचा न था...