यूं ही बिना मतलब के, वो बात बोल देते हैं
खुद ब खुद अपना ही, वो राज़ खोल देते हैं
समझते हैं वो खुद को चालाक कुछ ज्यादा,
और खुशनुमा माहौल में, वो रार घोल देते हैं
न तो शब्द की पहचान न तासीर से मतलब,
आया जुबाँ पे जो भी, वो अल्फ़ाज़ बोल देते हैं
कोई मतलब नहीं किसी के लिहाज़ का उन्हें,
सभी के समक्ष अपनी, वो औकात खोल देते हैं
रिश्तों की अहमियत भला वो क्या जाने,
खुद ही मीठे रिश्तों में, जो खटास घोल देते हैं

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