चढ़ते हुए सूरज को, सभी झुक कर सलाम करते हैं
मगर जब डूब जाता है वो, तो घर पे आराम करते हैं
जब तक शान है किसी की लोग करते है गुणगान,
पर जब बदलता है वक़्त, तो दूर से सलाम करते हैं
कल तक गुणों की खान हुआ करते थे जिनके लिए,
वही आज बता कर आवारा, हमको बदनाम करते हैं
कैसे हैं लोग कैसी है अजीबो गरीब फ़ितरत उनकी,
कभी कभी तो यहां, अपने भी गैरों सा काम करते हैं...

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