दिल के शोलों की जलन, हमसे पूछो,
कैसी है कांटो की चुभन, हमसे पूछो,
हो चुका है ख़त्म दौर-ए-शराफत अब,
दोरंगी दुनिया का चलन, हमसे पूछो,
न समझो माली को बगीचे का मालिक,
अब कैसे उजड़ते हैं चमन, हमसे पूछो,
आज़ाद #ज़िंदगी जीना तो सपना है अब,
कैसे होता है उसका दमन, हमसे पूछो,
न उठाये फिरिये ग़मों का पहाड़ "मिश्र",
इसमें होता है कितना वजन, हमसे पूछो !!!

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