ख़ुद ही काँटों भरे ये रास्ते, हम बनाते क्यों हैं,
यारो पत्थर दिलों से रिश्ते, हम निभाते क्यों हैं !
जब जानते हैं दुनिया की बेरुख़ी का आलम,
तो औरों को खुद उजड़ के, हम बसाते क्यों हैं !
न समझता है कोई भी औरों की मुश्किल यारो,
तो #दिल में औरों के दर्दो ग़म, हम बिठाते क्यों हैं !
ज़रा सी बात पर कभी अपने पराये नहीं हो जाते,
फिर दुश्मनों से दिल आखिर, हम लगाते क्यों हैं !
जो खड़ा था कभी साथ साथ हर कदम पे "मिश्र",
सबसे ज्यादा ही दिल उसका, हम दुखाते क्यों हैं !

Leave a Comment