न बचा है कोई ग़म, मुझे अब रुलाने के लिए ,
मान गया है दिल भी, सब कुछ भुलाने के लिए !
नफरतों की आग ने जला दिया मेरा सब कुछ,
न बची हैं उल्फतें, किसी का दिल चुराने के लिए !
न ढूंढो अब कोई भी नया चाँद मेरे लिए दोस्तो,
न बची है जगह कोई, अब चाँदनी छुपाने के लिए !
न रहा कोई अपनापन न रिश्तों का कोई बंधन,
दिखते हैं तैयार सब, बस कश्तियाँ डुबाने के लिए !
मैं तो एक जाहिल ही नहीं काहिल भी हूँ दोस्त,
न आतीं हैं मुझे तरकीबें, आसमां झुकाने के लिए !