शब्दों के नुकीले दांत, अंदर तक मार करते हैं
घुसते हैं जेहन से, पर ज़िगर पर बार करते हैं
रहजाते हैं पैबस्त होकर दिल के कोने में,
जन्म गुज़र जाता है, पर नहीं वो घाव भरते हैं
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