दोस्तो कानों के हम भी,कच्चे नहीं हैं !
मगर तज़ुर्बे हमारे, कुछ अच्छे नहीं हैं !

बजा कर झुनझुने फुसलाते हैं हमको,
कोई बताये उन्हें कि, हम बच्चे नहीं हैं !

सब समझते हैं हम चालाकियां उनकी,
सच ये है कि दिल के, वो सच्चे नहीं हैं !

फंसाते हैं किस कदर लोगों को झांसे में,
दिखते तो हैं भोले मगर, वो वैसे नहीं हैं !

वादों की पोटली ले कर आते हैं जब तब,
पर वादों के असर, कभी दिखते नहीं हैं !

लूटते हैं जनता को बड़े ही ढंग से "मिश्र",
फिर भी कहते हैं वो, कि उचक्के नहीं हैं !

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