तेरी यादों का ज़खीरा, कब तक दबाये रखूँ
दिल में वो तेरी सूरत, कब तक बसाये रखूँ
कभी जलाई थी जो तूने मोहब्बत की शमा,
उसको मैं आखिर यूं, कब तक जलाये रखूँ
तुझे देखना है तो देख ले यहाँ आकर यारा,
मैं उल्फत का मलबा, कब तक बचाये रखूँ
सच है कि होती है तेरी कमी महसूस मुझे,
पर यूँही झूठी तसल्ली, कब तक बँधाये रखूँ
तूने तो तमाशा बना दिया मेरी ज़िन्दगी का,
मैं तेरी डगर पे पलकें, कब तक बिछाए रखूँ
गुज़रे हुए लम्हें कभी वापस न आते "मिश्र",
आखिर मैं तेरी दास्ताँ, कब तक छुपाये रखूँ...
बेकार अपने वक़्त को, गंवाया मत करिये
हर जगह अपनी टांग, फंसाया मत करिये
कोई भी किसी से कम नहीं है आज कल,
बेसबब किसी पे धौंस, जमाया मत करिये
ख़ुराफ़ातों से न मिला है न मिलेगा कुछ भी,
यूं हर वक़्त टेढ़ी चाल, दिखाया मत करिये
ये ज़िन्दगी है यारो इसे मोहब्बत से जीयो,
इसमें नफ़रतों का पानी, चढ़ाया मत करिये
गर उलझन है अपनों से तो सुलझाइये खुद,
मगर शोर घर से बाहर, मचाया मत करिये
अब तो न बचा है कोई भी भरोसे के लायक,
किसी को दिल की बात, बताया मत करिये
ज़िन्दगी का मसला कोई खेल नहीं है ‘मिश्र’,
कभी बेवजह इसको, उलझाया मत करिये...
जीना भी आ गया, हमें मरना भी आ गया.
लोगों की नज़र को, हमें पढ़ना भी आ गया .
यूं ही तो नहीं गुज़ारी है ये ज़िन्दगी हमने,
दिलों की धड़कनें, हमें परखना भी आ गया !
मुखौटों की आड़ में बहुत लुट चुके हैं हम,
भोली सूरतों को, हमें समझना भी आ गया !
हँसते थे हम भी औरों की मुश्किलें देख कर ,
मगर अब तो खुद पे, हमें हँसना भी आ गया !
सर झुकाये रहे तो लोग ठगते रहे जी भर के,
अब तो सर उठा के, हमें चलना भी आ गया !
बड़ी ही टेढ़ी चाल है ज़ालिम ज़माने की "मिश्र",
पर कदम पर कदम, हमें रखना भी आ गया !