तेरी यादों का ज़खीरा, कब तक दबाये रखूँ
दिल में वो तेरी सूरत, कब तक बसाये रखूँ
कभी जलाई थी जो तूने मोहब्बत की शमा,
उसको मैं आखिर यूं, कब तक जलाये रखूँ
तुझे देखना है तो देख ले यहाँ आकर यारा,
मैं उल्फत का मलबा, कब तक बचाये रखूँ
सच है कि होती है तेरी कमी महसूस मुझे,
पर यूँही झूठी तसल्ली, कब तक बँधाये रखूँ
तूने तो तमाशा बना दिया मेरी ज़िन्दगी का,
मैं तेरी डगर पे पलकें, कब तक बिछाए रखूँ
गुज़रे हुए लम्हें कभी वापस न आते "मिश्र",
आखिर मैं तेरी दास्ताँ, कब तक छुपाये रखूँ...

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