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मेरी ज़िंदगी की गाड़ी, तनिक भी न हिल पायी है
मेरे अरमानों की बगिया, अभी तक न खिल पायी है
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खुद ही तय करते हैं मंज़िलें, रास्ता भी खुद बनाते हैं
जीते हैं अपनी शर्त पर, अपनी दुनिया भी खुद बनाते हैं
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कभी तो हसीन मौसम का बहाना ढूढते हैं
तो कभी ग़मगीन दिल का बहाना ढूढते हैं
कुछ
नहीं तो दस्तूर का नारा लगा कर
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कभी वीरानों में भी फूल खिल जाते हैं
कभी गैरों में भी हमसफर मिल जाते हैं
कहीं किसी को कब्र नसीब
नहीं होती
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दूल्हों की मंडी सजा रखी है खरीदने वाले चले आइये
हर किस्म के दूल्हे मिलते हैं अपना #नसीब आज़माईये
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जब तक सांस है किसी का सहारा मिल
नहीं सकता
खुद ही तैरना होगा वरना किनारा मिल
नहीं सकता
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अगर ठोकर लगती है तो रास्तों को दोष देते हैं
खिलाडी हार जाते हैं तो निर्णय को दोष देते हैं
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मैं फूलों का
नहीं कांटों का एहतराम करता हूँ
फ़ितरत है चुभने की फिर भी सलाम करता हूँ
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दुनिया तो बाज़ार बन गयी, हर आदमी सौदा करता है
गैरों की बात अलग समझो, वो अपनों से सौदा करता है
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आज कल कहीं से सुकून की खबर
नहीं मिलती
बेचैनियां इस कदर हैं चैन की सांस
नहीं मिलती
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