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एक मुसाफिर हूँ यारो, कोई तो साथ दे दो,
थोड़ी सी देर को, #मोहब्बत की छांव दे दो !
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इज़्ज़त बचानी है, तो ईमान बचा के रखिये,
अपने हसीन सपनों को, यूँ ही सजा के रखिये !
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कान्धे पर लिये झोला जाने लगे बाजार
लाना था घर के लिए सब्जी भाजी अचार।
तभी श्रीमती जी आईं देख मुझे इठलाईं
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कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
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गिर के फिर संभलने का, मज़ा ही
कुछ और है ,
अपने पैरों से चलने का, मज़ा ही
कुछ और है !
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कभी न कभी तो, ये वक़्त भी आना ही था,
जो आया था उसे तो, एक दिन जाना ही था !
क्यों लगा बैठे थे तुम एक मुसाफिर से दिल,
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सब
कुछ लुटा कर,
कुछ मिला तो क्या मिला,
अरे इज़्ज़त गवां कर,
कुछ मिला तो क्या मिला !
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न करनी है तुम्हें मदद, तो खुलेआम मत करिये,
मगर किसी की इज़्ज़त का, क़त्लेआम मत करिये !
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मेरी ज़िन्दगी को तू, यूं ही परेशान मत कर,
मेरी शराफ़तों को तू, यूं ही बदनाम मत कर !
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आये थे ऐसे कि, दिल में समा कर चले गए,
सो रहे थे चैन से, कि वो जगा कर चले गए !
न ठहरे वो इक पल भी मेरे गरीबखाने पर,
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