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जो डर के भागता है ज़िंदगी से, उसे हम क्या कहें
खुद लटक जाता है जो फंदे पे, उसे हम क्या कहें
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न कुछ भी उनका क़ुसूर था, न कुछ मेरा क़ुसूर था
पर जब देखा दिल में झांक कर, वो तो मेरा गुरूर था
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आँ
खों के समंदर में कभी उतर कर न देखा,
#दिल के #दरिया में कभी बहकर न देखा...
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~काश ये #इश्क भी
चुनावों की तरह होता,
हारने के बाद विपक्ष में बैठकर
कम से कम दिल
खोलकर
बहस तो कर लेते...
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रात की गहराई आँ
खों में उतर आई,
कुछ #ख्वाब थे और कुछ मेरी #तन्हाई,
ये जो पलकों से बह रहे हैं हल्के हल्के,
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एक फ्लैट में घंटी बजती है
और महिला जो घर में अकेली है दरवाज़ा
खोलती है ...
भिक्षुक:- माई, भिक्षा दे
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ना जाने क्यों तूँ मुझसे जुदा है
क्यों आँ
खों से आंसू जुड़ा है
तूँ रूठी है ,या रूठा खुदा है
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गुज़रती है जिनके ज़िगर पर आँ
खों से नहीं रोते
वो घुट घुट कर मरते हैं और दिन रात नहीं सोते
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कोई तो कुछ पा कर हँसता है,
तो कोई कुछ
खो कर रोता है
कोई तो रातों को तारे गिनता,
तो कोई नींद चैन की सोता है
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नज़रों की चाहत है, कि जी भर के दीदार करें
और #दिल चाहता है, कि जी भर के प्यार करें
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