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पूछूँगा विधाता से मैं, कि ये कैसा मुकद्दर बना दिया,
न बचा था ठौर कोई, जो आँखों को समंदर बना दिया !
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जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर
दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
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मैं किसी के दर पर, सर झुकाने नहीं जाता !
मैं महफिलों में, अपना
दर्द सुनाने नहीं जाता !
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न तो ग़मों का गम है, न ख़ुशी की ख़ुशी हमको !
भट्टी में पका चुकी है खूब, ये ज़िन्दगी हमको !
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कंकरीली राहों की कशक, आज भी ताज़ा है,
गरम रेत की वो तपिश, आज भी ताज़ा है !
फटी बिबाइयों का वो कशकता खामोश
दर्द,
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रोज रोज यहाँ नए खेल होते है रिश्ते टूटते और कमजोर होते है
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वाह रे जमाने तेरी हद हो गई,
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला,
आज वो मोहताज हो गई !
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दर्द ए दिल मैं अपना, बताऊँ किस तरह,
मैं तराना ज़िंदगी का, सुनाऊँ किस तरह !
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न दिन को चैन, न रातों को आराम आता है,
है पाया #नसीब ऐसा, कि
दर्द बेलगाम आता है !
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अब झूठी वफ़ा जताने से, भला क्या फायदा,
#मोहब्बत के हलफ़नामे, से भला क्या फायदा !
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