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डर है कि कहीं वो, बेवफ़ा न हो जाए,
बे-सबब ये #ज़िंदगी, तबाह न हो जाए !
वो तो बेख़बर है दुनिया की चालों से,
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होती हर किसी पे दौलत, तो जाने क्या होता,
हो जाती चाहतें सब पूरी, तो जाने क्या होता !
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खुद अपने ही दीये ने, अपना घर जला दिया ,
समझा जिसे दिल, उसने ही दिल जला दिया !
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ये ज़िन्दगी सँवर जाये, अगर तो अपने पास हों,
शामो सहर बदल जाएँ, अगर तो अपने पास हों !
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इश्क़ से हमने तो
यारो, बंदगी कर ली,
यूं ही तबाह बेकार में, ज़िन्दगी कर ली !
हमें तो उजाले दौड़ते हैं काटने को अब,
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एक मुसाफिर हूँ
यारो, कोई तो साथ दे दो,
थोड़ी सी देर को, #मोहब्बत की छांव दे दो !
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रह के भी साथ उनके, न समझ पाए हम,
दिल की कालिखों को, न परख पाए हम !
भला क्या करें हम उस से गिला शिकवा,
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कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
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कभी न कभी तो, ये वक़्त भी आना ही था,
जो आया था उसे तो, एक दिन जाना ही था !
क्यों लगा बैठे थे तुम एक मुसाफिर से दिल,
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खुश है ज़िंदगी से जो, उसे आबाद रहने दो,
दिल की धड़कनें यूं ही, बे-आवाज़ रहने दो !
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