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मत खोइए सिर्फ ख़्वाबों में, कुछ कर के तो देखिये
यारो मुकद्दर की बात छोडो, कुछ हट के तो देखिये
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अपनी जुबाँ की तासीर को, ज़रा
समझ कर देखो
कैसे करती है घाव गहरे ये, ज़रा
समझ कर देखो
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दोस्त: क्यों भाई आजकल कोई कविता
नहीं लिख रहे हो? क्या हुआ है 🤔 ?
कवि: नहीं भाई, जिस लड़की के लिये लिखता था
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यूं ही बिना मतलब के, वो बात बोल देते हैं
खुद ब खुद अपना ही, वो राज़ खोल देते हैं
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इंसान को दूरदर्शन 📺 की तरह
सरल रहना चाहिये
ना कोई लोभ, ना कोई मोह 😇
उदाहरण स्वरुप –
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हर दस्तूर इस ज़माने का, निभाया हमने,
मगर न पा सके वो यारो, जो चाहा हमने !
न आये कभी काम जिन्हें
समझा अपना,
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समय के साथ, खुद भी तो बदलना सीखो,
दुनिया के ढांचे में, खुद भी तो ढलना सीखो !
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गुलशन में लगी आगों को, हम बुझाएं कैसे,
इन #मोहब्बत के परिंदों को, हम बचाएं कैसे !
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चाहत की इस दुनिया में, केवल व्यापार मिले मुझको
चाहा जिसे फूलों की तरह, उससे ही खार मिले मुझको
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न जाने कितनों को, बदलते देखा है हमने
कितने रिश्तों को, बिखरते देखा है हमने
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