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जो न समझा कोई, वो ज़ज्बात हूँ मैं
सुबह की चाह में गुज़री, वो रात हूँ मैं
निभाने से डरते हैं क्यों लोग रिश्ते,
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कितना ही दिल बहलाएं मगर, दर्द कम नहीं होते
कितने ही आंसू बहाएं मगर, ये गम कम नहीं होते
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न मिली मंज़िल तो, राहें बदल डालीं
वक़्त बदला तो, निगाहें बदल डालीं
आसमानों को छूने का दम था मगर,
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किसी को आखिर हम भुलाएँ कैसे,
किसी को बे सबब हम रुलायें कैसे !
झूठे सपने दिखाना नहीं आता हमें,
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कभी तो चाँद आसमान से उतरे और आम हो जाये,
तेरे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाये,
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किसी भी
हालात में, जीना आता है हमें,
ग़मों को ज़िगर से, लगाना आता है हमें !
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चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
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जैसे कि रंग पहले थे, न दिख रहे हैं आजकल,
सितारे वो चाहत के, न दिख रहे हैं आजकल !
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राख हूँ मैं बेशक मगर, फ़ितरत अभी बाक़ी है,
दिखा सकता हूँ जलवे, हिम्मत अभी बाक़ी है!
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ज़िन्दगी के, हर सबालात से डर लगता है,
जो गुज़र गए, उन लम्हात से डर लगता है !
काटने को दौड़ता है मेरा अतीत मुझको,
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