Shanti Swaroop Mishra

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Foolon Ki Chahat Mein

फूलों की चाहत में हम, ख़ारों से प्यार कर बैठे,
देखे तितलियों के रंग, तो भोरों पे वार कर बैठे !
ख़्वाब-ए-क़ुर्बत में भुला दिया हमने खुद को भी ,
हम ज़िंदगी का हर पल, गुलों पे निसार कर बैठे !
कभी गुलशन में रंग भरने की तमन्ना थी हमारी,
पर क्यों कर न जाने हम, बहारों से रार कर बैठे !
घुसे थे गुलशन में हम तो गुलों के दीदार के लिए,
फंसा के दामन खुद ही, काँटों से तकरार कर बैठे !
गर अपने बस में होता तो रोक देते ख़िज़ाँ को भी,
मगर हम कुदरत के मामलों से, इकरार कर बैठे !

Matalab ki yaari

अगर पाना है कुछ, तो रोना जारी रखिये
अपने चेहरे पे, दिखावे की लाचारी रखिये
मक़सद हो जाये पूरा तो बदल लो चोला,
वरना तो अपनी, ये हिक़मतें जारी रखिये
ज़िन्दगी जीना है तो सीख लो कुछ प्रपंच,
आँखों में कभी पानी, कभी चिंगारी रखिये
एक जैसा आचरण सदा अच्छा नहीं होता,
कभी जुबान हलकी, तो कभी भारी रखिये,
जितना झुकोगे लोग तो झुकाते ही जाएंगे,
ज़रुरत पड़ने पे, अपनी बात करारी रखिये
कोई आ जाये तुम्हारे दर पे मदद पाने को,
कैसे दिखानी है मजबूरी, पूरी तैयारी रखिये
इस दुनिया में जीना भी एक कला है "मिश्र",
मतलब की दुश्मनी, मतलब की यारी रखिये

Bina Matlab Ke Wo

यूं ही बिना मतलब के, वो बात बोल देते हैं
खुद ब खुद अपना ही, वो राज़ खोल देते हैं
समझते हैं वो खुद को चालाक कुछ ज्यादा,
और खुशनुमा माहौल में, वो रार घोल देते हैं
न तो शब्द की पहचान न तासीर से मतलब,
आया जुबाँ पे जो भी, वो अल्फ़ाज़ बोल देते हैं
कोई मतलब नहीं किसी के लिहाज़ का उन्हें,
सभी के समक्ष अपनी, वो औकात खोल देते हैं
रिश्तों की अहमियत भला वो क्या जाने,
खुद ही मीठे रिश्तों में, जो खटास घोल देते हैं

Aansu bahana bura lagta hai

मुझको बेसबब, सर झुकाना बुरा लगता है
यूं ही मकर से, आंसू बहाना बुरा लगता है
जो दिल और चेहरे को रखते हैं अलहदा,
ऐसे शातिरों से, दिल लगाना बुरा लगता है
अपने बूते पे गुमाँ है तो करिये फतह मगर,
किसी की, बेबसी को भुनाना बुरा लगता है
उड़िये, किसने रोका है तुम्हारी परवाज़ को,
मगर किसी को, नीचे गिराना बुरा लगता है
जीता है हर आदमी अपनी तरह से "मिश्र",
मगर खुद को, ऊंचा दिखाना बुरा लगता है

Zara samajh kar dekho

अपनी जुबाँ की तासीर को, ज़रा समझ कर देखो
कैसे करती है घाव गहरे ये, ज़रा समझ कर देखो
तलवार का घाव तो, भर जाता है एक दिन,दोस्त
पर ना भरते है ज़ख्म इसके, ज़रा समझ कर देखो
इन आँखों से देखी हैं, कितनी ही तबाहियाँ हमने,
कैसे बिगड़ते हैं ये नाते रिश्ते, ज़रा समझ कर देखो
इस जुबाँ के दम पे ही, बनते हैं दुनिया के काम सारे,
क्यों कर बिगड़ते हैं इसी से, ज़रा समझ कर देखो
ज़रा सा ही चुप, हरा देता है हज़ार बातों को "मिश्र",
फिर बदलती है फिजां कैसे, ज़रा समझ कर देखो