वक़्त गुज़र कर यूं चला गया,
हम बचपन के हल्ले भूल गये
जहाँ दौड़ दौड़ कर वचपन बीता,
हम वो गली मोहल्ले भूल गये
जिनके साथ ये बचपन गुज़रा,
हमतो उनके भी चेहरे भूल गये
जिस घर में मां की ममता पायी,
हम उस घर के मंज़र भूल गये
महलों की चमक में ऐसे खोये,
अपने मिट्टी के घरोंदे भूल गये
जिस मिट्टी में लोट कर बड़े हुए,
हम उसकी सोंधी खुश्बू भूल गये
भौतिक सुख में कुछ ऐसे डूबे,
हम कुदरत की छटाएं भूल गये
हम ऐसे बसे परदेस में आकर,
अपने घर के ही रस्ते भूल गये...
दुनिया के मेले में खो गये सारे रिश्ते,
आज उनको संजोने को जी चाहता है
जो बेरुखी से तोड़े थे अपनों के दिल,
आज फिर से मिलाने को जी चाहता है
हम खूब झूठ बोले थे अपने आप से,
सिर्फ सच बोलने को अब जी चाहता है
यूं ही सपनों में हमारी सारी उम्र गुज़री,
अब हक़ीक़त में जीने को जी चाहता है
जो ख़्वाब देखे अपने ख़्वाबों में हमने,
आज उन्हें सच बनाने को जी चाहता है
यूं ही अंधेरों में बिता दी सारी उम्र हमने,
अब उजालों में उड़ने को जी चाहता है...
फिर किसी की याद ने रात भर जगाया हमको
मोहब्बत की तपिश ने बे मौत जलाया हमको
न दिन को करार मिला न रात को सुकून
आखिर क्या गर्ज़ थी खुदा को जो बनाया हमको
चिराग बनकर हम जलाते रहे उल्फ़त की शमा
पर नफरत की आंधियों ने हमेशा डराया हमको
बे-वफाओं से भला क्या करते वफा की उम्मीद
हमेशा उनके दिये जख़्मों ने गले लगाया हमको...
उम्र भर संभाली जो मोहब्बत की तानें,
कब टूट जाएं ये किसको पता है
मोहब्बत की राहों में वफ़ाओं के साये,
कब छूट जाएं ये किसको पता है
मद भरी आँखों में आते हसीन सपने,
कब टूट जाएं ये किसको पता है
है जीवन की नैया अब भंवर के हवाले,
कब डूब जाएं ये किसको पता है
अपनों को रखिये अपने दिल से लगा के,
कब रूठ जाएं ये किसको पता है...
#मोहब्बत के नाम पर, क्यों रुलाते हैं लोग
सब कुछ लूट कर भी, क्यों भुलाते हैं लोग
तमाम उम्र जी भर जलाती है ये दुनिया,
फिर भी बाद मरने के, क्यों जलाते हैं लोग ???