कभी मेरी भी ज़िन्दगी तुम, बिता कर तो देखो ,
कभी खुद को मेरी आग में, जला कर तो देखो !
कैसे गुज़रते हैं #ज़िन्दगी के लम्हें तुम क्या जानो,
ज़रा अपनी आँखों पे पड़े पर्दे, हटा कर तो देखो !
बहुत ज़ख्म खाये हैं इस बेक़रार दिल ने दोस्त,
कैसे बहता है समंदर आँखों से, आ कर तो देखो !
हम तो खोये हैं आज भी उन गुज़रे हुए लम्हों में,
आकर के कभी हम को, गले लगा कर तो देखो !
दिखता है मेरे चेहरे पे नहीं है वो हक़ीक़त,
गर जानना है सच तो #दिल में, समा कर तो देखो !
कहीं बैठ के कोने में, मैं रोना चाहता हूँ ,
ग़मों को आंसुओं से, मैं धोना चाहता हूँ !
जाने कब मिलेगी घुटन से निज़ात यारो,
पुरानी यादों को अब, मैं खोना चाहता हूँ !
कोई तो होगी तदबीर कि दुबारा जी लूँ,
जीवन के धागों को, फिर पिरोना चाहता हूँ !
बहुत ख़्वाब देखे हैं मैंने रातों में जाग कर,
अब दुनिया से बेखबर, मैं सोना चाहता हूँ !
बहुत जी लिया मैं साजिशों के बीच "मिश्र",
नई दुनिया का सपना, मैं सजोना चाहता हूँ !!!
न थे हम ऐसे मगर, हमें ऐसा बना दिया,
अपनों की करतूत ने, बुत सा बना दिया ! #दिल तो है मगर ये धड़कता है ज़रा ज़रा,
दुनिया की घातों ने, अधमरा बना दिया !
सागर सा विशाल था हमारा दिल यारो, #दुनिया की रंजिशों ने, ज़रा सा बना दिया !
कहने को तो ज़िंदा हैं चलती हैं साँसें भी,
मगर अंदर से बिलकुल, मुर्दा बना दिया !
न रही जीने की ललक तो क्या करें ?
न चाहा था जो कभी, हमें वैसा बना दिया !
दुनिया के दिए ज़ख्मों को, सहना ही पड़ता है,
खा कर के ठोकरें भी, हमें चलना ही पड़ता है !
न देखा है मैंने आज तक कोई भी खुशनसीब,
यारो हर किसी को रंजोग़म, सहना ही पड़ता है !
जब बिगड़ता है वक़्त तो न आती काम ऊंचाई
कभी पर्वतों के शिखर को, ढहना ही पड़ता है !
चाहे खुशियों के रेले हों चाहे ग़म के झमेले हों,
हर हाल में इन अश्कों को, बहना ही पड़ता है !
छुपता नहीं है झूठ कभी खामोशियों में फंस के,
किसी दिन तो सच आखिर, कहना ही पड़ता है !
हम रोज़ देखते हैं इस दुनिया के करिश्में "मिश्र",
पर मन मार के फिर भी, हमें रहना ही पड़ता है !!!
जब नफ़रत भरी है दिल में, तो मोहब्बत क्या करेगी,
जब चाहत है डूब मरने की, तो किस्मत क्या करेगी!
भले ही छूने का आसमाँ, रखता हो हौसला कोई भी,
पर जब काटें गला अपने ही, तो हिम्मत क्या करेगी !
अब सच से मुंह छुपाना तो, बना ली है आदत सब ने,
जब भाती है वनावट सबको, तो असलियत क्या करेगी!
तब तो न किया यक़ीन तुमने, ईश्वर की डगर पर भी,
जबकि दलदल में फंस चुके हो, तो इबादत क्या करेगी!
जाइये भूल अब तो, वो ईमान ओ धरम की बातें ,
जब चलती है दुनिया झूठ से, तो हक़ीक़त क्या करेगी !!!