Shanti Swaroop Mishra

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Yaadon ka karwan

यूं ही यादों का कारवां गुज़रता रहेगा,
सूरज भी रोज़ डूबता निकलता रहेगा !
फासलों से मोहब्बत नहीं मिटा करती,
दूर कितने भी रहो प्यार उमड़ता रहेगा !
मुश्किलें तो आती हैं हर सफर में यारो,
यूं ही ज़िन्दगी का सफर चलता रहेगा !
न कोई बदल पाया किसी की फ़ितरत,
यारो जो जैसा है वैसा ही चलता रहेगा !
क्यों फंस रहे हो दोस्त सोचों के जाल में,
यूं ही ये रेला तो ग़मों का सरकता रहेगा !!!

Dooriyon ka kya karein ?

मिलना तो चाहे दिल मगर, इन दूरियों का क्या करें,
हैं ज़िगर में पैबस्त जो, उन मज़बूरियों का क्या करें !
मैं तोड़ डालूं ये बेड़ियाँ ये चाहत है मेरे कदमों की,
पर बेरूख़ी से भरी उनकी, तिजोरियों का क्या करें !
मेरा दर्दे दिल न समझे कोई तो शिकवा नहीं मगर,
बदनाम हम जिनसे हुए, उन मश्हूरियों का क्या करें !
इन फासलों को ले कर कभी होते नहीं रिश्ते फ़ना
पर बनतीं पास रह कर भी, उन दूरियों का क्या करें !
न बदली हैं न बदलेंगी हवाएं इस जमाने की दोस्त,
जब फैली है दुर्गन्ध इतनी, तो कस्तूरियों का क्या करें !!!

Asliyat chhupaye huye

हर तरह के 👹 मुखौटे 👺, वो लगाए हुए हैं,
लोग औकात अपनी, यूं छुपाये हुए हैं !
क़त्ल करके भी बेगुनाह बनते हैं वो,
झूठी शराफत के, चश्मे 😎 लगाए हुए हैं !
हर तरफ दिखता है अजब सा समां,
🌹फूलों 🌻 की राहों में, कांटे बिछाए हुए हैं !
अपनों पे क्या यक़ीं कब तक निभाएं,
अंदर तो वो भी, मतलब बसाये हुए हैं !
जो भी दिखता है वो वैसा नहीं है दोस्त,
सब के सब तो,असलियत छुपाये हुए हैं !

Khatam kahani pyar ki

अच्छा हुआ कि ख़त्म हुई, अपनी कहानी प्यार की ,
हम छोड़ आये उनके लिए, सारी रवानी बहार की !
न उठाओ फूल कब्र से, गर सूखें तो सूख जाने दो,
अब यही बची है मुझ पे बस, इक निशानी प्यार की !
सोचा था कि बिकती नहीं, उल्फत कहीं बाजार में,
पर दोस्तों ये सच नहीं, कभी सुनना जुबानी यार की !
कागज़ के चंद टुकड़ों से, बदल जाते हैं कैसे दिल,
कभी आ कर मेरे मज़ार पे, सुनना कहानी प्यार की !
यारो होते नहीं पूरे कभी भी, ज़िन्दगी के स्वप्न सारे,
बस मेरी तरह मायूस दिल, लिखता कहानी हार की !!!

Na Bacha Koi Gham

न बचा है कोई ग़म, मुझे अब रुलाने के लिए ,
मान गया है दिल भी, सब कुछ भुलाने के लिए !
नफरतों की आग ने जला दिया मेरा सब कुछ,
न बची हैं उल्फतें, किसी का दिल चुराने के लिए !
न ढूंढो अब कोई भी नया चाँद मेरे लिए दोस्तो,
न बची है जगह कोई, अब चाँदनी छुपाने के लिए !
न रहा कोई अपनापन न रिश्तों का कोई बंधन,
दिखते हैं तैयार सब, बस कश्तियाँ डुबाने के लिए !
मैं तो एक जाहिल ही नहीं काहिल भी हूँ दोस्त,
न आतीं हैं मुझे तरकीबें, आसमां झुकाने के लिए !