डर है कि कहीं वो, बेवफ़ा न हो जाए,
बे-सबब ये #ज़िंदगी, तबाह न हो जाए !
वो तो बेख़बर है दुनिया की चालों से,
फंस कर कहीं वो, गुमराह न हो जाए !
फ़ितरत बदलते नहीं लगती देर यारो,
गलती से कहीं उससे, गुनाह न हो जाए ! #दोस्ती का भरोसा भी न रहा आज कल,
कहीं #प्यार किसी से, बेपनाह न हो जाए !
सोचते रहिये दोस्त बस ये बेतुकी बातें,
कहीं दिमाग़ तेरा भी, ख़राब न हो जाए !!!
अब झूठी वफ़ा जताने से, भला क्या फायदा, #मोहब्बत के हलफ़नामे, से भला क्या फायदा !
कहोगे कि जकड़े थे ज़माने कि मज़बूरियों में,
अब तो किसी भी बहाने से, भला क्या फायदा !
ज़ख्मों में #दर्द है तो होने दो तुम्हें क्या ज़ालिम,
अब यूं दर्द की दवा देने से, भला क्या फायदा !
जल चुकी है अब तो दीये की बाती भी यारो,
अब उसमें तेल बढ़ा देने से, भला क्या फायदा !
वक़्त के साथ न चले तो कैसी #ज़िंदगी दोस्त ,
अब यूं व्यर्थ में हाथ मलने से, भला क्या फायदा !!!
अपने को अब भाती नहीं, शरारत किसी की,
अब तो समझ आती नहीं, इबारत किसी की !
कोई उठाये भले ही तबालतें उम्र भर यूं ही,
पर बदलती नहीं है दोस्तों, आदत किसी की ! #ज़िन्दगी मिली है तो ज़रा प्यार से जी लो इसे,
फ़िज़ूल में क्यों लेते उधार, अदावत किसी की !
इज़्ज़त है अब उसी की है जिसके पास दौलत,
अब तो न काम आती इधर, शराफत किसी की !
न गुनगुनाइए #दोस्त अब चाहत के वो तराने,
इधर ख़ुदा भी न सुनता अब, इबादत किसी की !!!
जब कभी बादल, मेरे आँगन पे गरजते हैं,
तब तब उनकी यादों के, साये लरजते हैं !
कैसे भुलाएं वो #मोहब्बत के हसीन लम्हें,
उनके सहारे तो, सुबह ओ शाम गुज़रते हैं !
वो तो पूंछते हैं #नफ़रत से हमारा रिश्ता,
हम हैं कि इसे उनका, अंदाज़ समझते हैं !
कोई कैसे भूल सकता है अपने वादे इरादे,
पर अफ़सोस, जुबां से लोग कैसे पलटते हैं !
यही #ज़िन्दगी है दोस्त अफ़सोस मत करिये,
इधर तो ऐसे ही, हर पल नज़ारे बदलते हैं !!!
न दिन को चैन, न रातों को आराम आता है,
है पाया #नसीब ऐसा, कि दर्द बेलगाम आता है !
न रहा कुछ बाक़ी इस बुत से शरीर में दोस्त, #दिल को तो याद उनका, बस इल्ज़ाम आता है !
बरसती हैं सावन की घटायें हो कर आँखों से,
अब हर हवा का झोखा, दर्द का पैगाम लाता है !
अगर जीना है #ज़िन्दगी तो दर्द को भूलो दोस्त ,
यूं ही घुट घुट के जीना, मुश्किलें तमाम लाता है !!!