बस तमाम उम्र, गलती यही वो करता रहा,
औरों की गलतियां, अपने सर वो धरता रहा !
लिए फिरता रहा भले ही धूल चेहरे पे अपने,
मगर औरों के चेहरों को, साफ़ वो करता रहा !
न देखी खुशियां कभी उसके चेहरे पर हमने,
जाने कितनों के ग़म, दिल में वो भरता रहा !
अफ़सोस कि न दिया किसी ने साथ उसका,
खुद के लिए दुनिया से, अकेला वो लड़ता रहा !
तारीफ़ में शब्द भी बोनें नज़र आते है,
दगा के बाद भी, भला औरों का वो करता रहा !
नेताओं को जनता में, बस वोट नज़र आती है,
जनता तो पागल है, बस ये सोच नज़र आती है!
खुद को बताते हैं वो दूध के धुले हुए मगर,
अपने हर विपक्षी में, उन्हें खोट नज़र आती है !
गलती से पूंछता है उनके मंसूबों को गर कोई,
तो उनके मुखौटों पर, गहरी चोट नज़र आती है !
जनता से माँगना है तो दिलों को साफ़ रखिये,
उसको तुम्हारे अभिनय में, खोट नज़र आती है !
उतार कर मुखौटे दिखा दो उसे असली चेहरा,
मिट जाएगी दिलों से वो, जो लोच नज़र आती है !
दुनिया के सारे ग़म को, दिल में समां लिया मैंने
एक फूल से दिल को भी, पत्थर बना लिया मैंने
ये सोच कर कि शायद मुकद्दर कभी तो जागेगा,
जमाने की ख़लिश को भी, अपना बना लिया मैंने
गुज़र जाता है खुशियों का उजाला बिना छुए मुझे,
ये नसीब था कि अंधेरों को, अपना बना लिया मैंने
कभी न भूल पाया मैं दिल से वो गुज़रे हुए लम्हात,
मगर फिर भी इस ज़माने को, गले लगा लिया मैंने
सोचता हूँ कि ज़िंदगी में शायद कुछ भला हो दोस्तो,
इसी की आस में दुश्मन को, दोस्त बना लिया मैंने...
हम तो अपनों को, अपना संसार समझ बैठे,
उन्हें ज़िन्दगी की नैया का, पतवार समझ बैठे !
रफ़्ता रफ़्ता फंसते गए हम उनके कुचक्र में,
हम तो उसी को ख़ुशी का, बाज़ार समझ बैठे !
कैसी हैं फितरतें उनकी न समझ पाये हम,
ज़ख्म देने पर भी उनका, इख़्तियार समझ बैठे !
पागल थे कि न समझे मन की गांठों को हम,
उनकी अदा को उल्फ़त का, इज़हार समझ बैठे !
भूल ही गए कि औकात बदल गयी है दोस्तो,
हम तो यूं ही उन पे, अपना अधिकार समझ बैठे !
गर बाज़ार में मिलता प्यार, तो खरीद लेते हम भी,
होता बिकाऊ अगर ऐतबार, तो खरीद लेते हम भी !
न होते वीरान गुलिस्तां न होती ये सर्दियां गर्मियां,
मिल जाता मौसम खुशगवार, तो खरीद लेते हम भी !
न होते कभी गम न बहता आंसुओं का दरिया कभी,
होता खुशियों का गर बाज़ार, तो खरीद लेते हम भी !
न होती ये झंझटें न होता ये बलवों का खेल ख़ूनी ही,
मिल जाता गर कहीं सदाचार, तो खरीद लेते हम भी !
जिन रिश्तों को बनाने में उम्र लगा देते हैं हम लोग,
काश खरीद सकते दौलत से, तो खरीद लेते हम भी !