Shanti Swaroop Mishra

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Zamana Khatam Ho Chala Hai

ये अजीब सा ही, मौसम हो चला है आज कल ,
आदमी का धीरज, ख़त्म हो चला है आज कल !
दिल में तो ख्वाहिशें सजी हैं सब कुछ पाने की,
मगर आदमी क्यों, बेदम हो चला है आज कल !
जिधर भी देखते हैं उधर सियासत का खेल है,
फिरकापरस्ती का, मौसम हो चला है आज कल !
सियासत के आँगन में तो हो सकता है कुछ भी,
जाने क्यों आदमी, बेशरम हो चला है आज कल !
वो भी दिन थे कि लोग मरते थे एक दूजे के लिए,
मगर वो जमाना अब, ख़त्म हो चला है आज कल !

Zakhm fir hare hone lage

अब दिल के ज़ख्म, फिर हरे होने लगे हैं !
हम ग़मों से अब, फिर लवरेज़ होने लगे हैं !
देख कर काली घटाओं का ये सुहाना मौसम,
अब दिल के आँगन में, फसाद होने लगे हैं !
जाग कर गुज़ार दीं जिनके लिए कितनी रातें,
अफ़सोस कि वो, किसी और के होने लगे हैं !
टूटे हुए दिल को अब भला कैसे संभालें दोस्त ,
उसके तो सारे ख़्वाब, अब तमाम होने लगे हैं !

Matlabi Dunia Hai Ye

वक़्त के गुज़रते ही, बुरे दिन भी टल जाते हैं !,
मगर कितने ही लोग, दिल से निकल जाते हैं !
न मिला पाते हैं वो फिर नज़रों से नज़रें कभी,
सर झुका कर के वो, चुप चाप निकल जाते हैं !
मिलते हैं गलत लोग भी इस ज़िन्दगी में यारो,
मगर बदौलत उनकी ही, कदम संभल जाते हैं !
बड़ी मतलबी बड़ी अजीब दुनिया है ये दोस्त ,
वक़्त बदलते ही, लोगों के मुखौटे बदल जाते हैं !

Khud Pe Aitbaar Karo

कर ले ऐतबार खुद पर, ये सहारे छूट जाएंगे,
जिन्हें कहता तू अपना, कभी भी रूठ जाएंगे !
करता है प्यार जिनसे तू खुद से भी अधिक,
तेरे देखते ही देखते, वो सब कुछ लूट जाएंगे !
समझ पाएगा जब तक दुनिया के कारनामे,
कभी देखे थे ख़्वाब प्यारे से, सारे टूट जाएंगे !
मत छेड़िये कभी खामोश दरिया को,
मचल गया जिस दिन, तो किनारे टूट जाएंगे !

Ye Dunia Rang Badalti Hai

माथे की सलवटों से, ग़मों को हटाना सीखो !
खुश रहो खुद भी व, औरों को हँसाना सीखो !
न आएगा कोई तुम्हारे ग़मों में होने शरीक़,
उलझनों को अपनी, खुद ही सुलझाना सीखो !
होगा क्या हासिल तुम्हें तन्हाइयों में बैठ कर,
यारा दुनिया की मुश्किलों से, टकराना सीखो !
ये जो दिल है उस पे न चलता बस किसी का,
इससे पहले कि बहक जाए, उसे मनाना सीखो !
ये अजीब दुनिया बदलती है रंग हज़ारों ,
अपनी #ज़िन्दगी के रंग, खुद सजाना सीखो !