एहसान करके जताना, ज़रूरी नहीं होता, #चाहत है कितनी बताना, ज़रूरी नहीं होता !
ग़मों का ज़खीरा तो बस #दिल में होता है,
किसी का अश्क़ बहाना, ज़रूरी नहीं होता ! #ज़िन्दगी का सफर तय करना लाज़िम है,
हमसफ़र का साथ पाना, ज़रूरी नहीं होता ! #दौलत से खरीद सकते हो बहुत कुछ यारा,
पर रिश्तों को खरीद पाना, ज़रूरी नहीं होता !
ज़िन्दगी अपनी है जैसे भी जियो ,
दिल में क्या है ये बताना, ज़रूरी नहीं होता !
मुझे तो हर तरफ, सिर्फ अँधेरा नज़र आता है,
ज़िंदगी का हर रंग, अब बदरंग नज़र आता है !
कभी गुज़रती थी सुबह ओ शाम बहारों में जहां,
अब वो गुलशन भी, मुझे वीरान नज़र आता है !
तसल्लियों के भरोसे कैसे जीते हैं लोग आखिर,
हमें तो हर पल, ये जमाना बेदर्द नज़र आता है !
ये दिल्लगी भी जाने क्या गुल खिलाती है यारो,
अच्छा भला सा आदमी, पागल सा नज़र आता है !
कितना भरा है #ज़हर दुनिया के लोगों में,
जब निकलता है वो, आदमी शैतान नज़र आता है !
दुनिया वही है, मगर कारनामे बदल गए हैं,
अब वक़्त के हिसाब से, #याराने बदल गए हैं !
आज भी बुनते हैं लोग षड्यंत्र के ताने बाने,
फ़र्क़ इतना है बस, तरीक़े पुराने बदल गए हैं !
समझते थे कि कुछ ढंग बदलेगा दुनिया का,
मगर सुर तो वही हैं, बस तराने बदल गए हैं !
अपनापन तो आज भी जीवित है यारो मगर,
वक़्त के लिहाज से, उसके माने बदल गए हैं !
तब जीते थे लोग सिर्फ अपनों के लिए,
मगर अब उनके जीने के, बहाने बदल गए हैं !
जिन्दगी की कशमकश ने, चाहतों को मार डाला,
धूप की इस तपिश ने, ठंडी हवाओं को मार डाला !
खुशियों की तमन्ना लिए आये थे इस शहर में हम,
मगर इसकी बेरुखी ने, सारे ख़्वाबों को मार डाला,
कितनी बदल गयी ये दुनिया समझ आ गया अब,
मतलब निकलते ही, लोगों ने रिश्तों को मार डाला !
कहाँ हैं वो दिल जिनमें कभी खुशियां ही खुशियां थीं,
अब तो नफरतों ने मिल के, मोहब्बतों को मार डाला !
इस लम्बी उम्र में जाने क्या क्या देख डाला,
खुद अपनों ने गैरों से मिल के, अपनों को मार डाला !
जाते जाते भी तो वो, हज़ार ग़म दे गया हमको,
यूं ही मर मर के, जीने की #कसम दे गया हमको !
बसाया था मन में उसे एक हसीं फूल समझ कर,
मगर #ज़िन्दगी में, खारों सी चुभन दे गया हमको !
दो पल की ज़िंदगी भी न जी सके कभी प्यार से,
बहारें छीन कर वो तो, उजड़ा चमन दे गया हमको !
सोचते रहे कि कभी तो बहेंगी ठंडी हवाएं,
मगर ज़िन्दगी भर की, वो तो जलन दे गया हमको !