एक अजीब दास्तान है मेरे सफरनामे की
वहां से चल कर यहां तक पहुँच पाने की
कभी तो किस्मत ने साथ छोड़ा रस्ते में
तो कभी रंग लायी साजिश इस ज़माने की
लोग उतने ही दूर होते गए हमें छोड़ कर
जितनी कोशिश की हमने उनको मनाने की
सब को फ़िक्र थी सिर्फ अपने ही सफर की
न की किसी ने मेहर मुझे मंज़िल बताने की
अकेला ही चला हूँ मैं अंजान राहों पे
न थी किसी के पास फुर्सत मेरे साथ आने की
हर मुश्किल में, साथ निभाता है दोस्त
हमारे ग़मों को, अपना बनाता है दोस्त
खून के रिश्ते छूट जाते हैं पीछे, मगर
मरने दम तक, रिश्ता निभाता है दोस्त
मतलब के रिश्ते हैं इस दुनिया में अब,
मगर निस्वार्थ दोस्ती, निभाता है दोस्त
भाग जाता ज़रुरत पे खून अपना, मगर
ऐसे वक़्त पर नज़र, सिर्फ आता है दोस्त
तेरे बिना ये ज़िन्दगी भी, एक सज़ा लगती है
दिल की धड़कन भी मुझे, एक कज़ा लगती है
ठंडक पड़ जाती है मेरे दुखते ज़ख्मों में यार,
जब बताते हैं लोग कि, तेरी भी रज़ा लगती है
ज़फ़ाओं की नगरी में मैं किससे उम्मीद करूं,
कभी तो मेरी ज़िन्दगी भी, मुझे खफ़ा लगती है
तेरा हर खून माफ़ है मेरे #दिल की अदालत में,
वो भला क्या जाने कि, कौन सी दफ़ा लगती है...
जो थे दिल के मेहमान कभी, जाने कैसे निकल गए
पक्के थे अपने रिश्ते, क्यों मोम के जैसे पिघल गए
जाने सब कुछ कैसे हुआ हम जाने कैसे भ्रमित हुए,
जिनको हमने अपना जाना, क्यों गैरों जैसे बदल गए
अच्छा हुआ मिट गए ख्वाब जो पाले थे इन आँखों ने,
कल आँखों के नूर थे हम, पर इकदम कैसे बदल गए
ठीक रहा सब देख लिया जीवन के अंतिम लम्हों में,
यहाँ गिरगिट जैसे लोग मिले, जब चाहा वैसे बदल गए...
नज़रों की चाहत है, कि जी भर के दीदार करें
और #दिल चाहता है, कि जी भर के प्यार करें
मगर कैसे समझाएं इन दो दिवानों को हम,
कि #नसीब में लिखा है, कि बस इन्तज़ार करें
लौट कर आ भी सकते हैं खोने वाले, मगर
जो हो गया #बेवफा, उस पे क्यों दिल निसार करें
वो तो पागल हैं जो बेगानों में अपना ढूंढते हैं,
बेहतर यही है, कि हम तक़दीर पर ऐतबार करें...