भला मुर्दों के शहर में, ज़िन्दगी का असर क्या होगा,
बनावट के इन मेलों में, सादगी का असर क्या होगा !
जिसने न कभी समझी, रहमो करम की भाषा यारो,
उन पत्थर दिलों में कभी, बंदगी का असर क्या होगा !
जो जलते ही रहते हैं रात दिन, नफरतों की आग में,
मैले दिलों में उनके, आशिक़ी का असर क्या होगा !
जिन्हें होता है नशा सिर्फ, अपनों का लहू पी कर ही,
ऐसी शैतान खोपड़ी में, मयकशी का असर क्या होगा !
टपकते हैं जुबाँ से जिनकी, ज़हरों से भरे अलफ़ाज़,
उनकी कडुवी जुबान पे, चाशनी का असर क्या होगा !!!

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