Mat Lapeto Kafan Se Chehra
मत लपेटो कफ़न से चेहरा, आँखें खुली रखने की आदत है
देखता हूँ आ जायें वो शायद, या अब भी कोई अदावत है
क्यों उतावले हो मुझे कंधों पै लादने के लिये "मिश्र",
कुछ देर और ठहर जाते, देर से आने की उनकी आदत है
मत लपेटो कफ़न से चेहरा, आँखें खुली रखने की आदत है
देखता हूँ आ जायें वो शायद, या अब भी कोई अदावत है
क्यों उतावले हो मुझे कंधों पै लादने के लिये "मिश्र",
कुछ देर और ठहर जाते, देर से आने की उनकी आदत है
मोहब्बत के नाम से डर गया हूँ मैं
अपनी ही नज़रों में गिर गया हूँ मैं
बेवफाई का जिक्र क्या करना "मिश्र"
हसीनों के मेले से गुज़र गया हूँ मैं
न वो दिल रहा न प्यार का जुनून
अब ठोकरें खाकर सुधर गया हूँ मैं
न आँसूं न ग़म न लटका हुआ चेहरा
इश्क़ की आफतों से उबर गया हूं मैं...
वो फिर से लौट आये थे
मेरी #जिंदगी में
अपने #मतलब के लिये,,,
और हम सोचते रहे कि
हमारी #दुआ में दम था !!!
मेरे पीठ पर जो जख्म है
वो अपनों की निशानी है..!!!
वरना
सीना तो आज भी
दुश्मनो के इंतजार में बैठा है..!