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कर ले ऐतबार खुद पर, ये सहारे छूट जाएंगे,
जिन्हें कहता तू अपना, कभी भी रूठ जाएंगे !
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अब दिल के ज़ख्म, फिर हरे होने लगे हैं !
हम ग़मों से अब, फिर लवरेज़ होने लगे हैं !
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एक बाग़ में लड़का लड़की से:
तुम्हारी आँखों में मुझे
सारी दुनिया नज़र आती है ^_^
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हम तो अपनों को, अपना सं
सार समझ बैठे,
उन्हें ज़िन्दगी की नैया का, पतवार समझ बैठे !
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दुनिया के
सारे ग़म को, दिल में समां लिया मैंने
एक फूल से दिल को भी, पत्थर बना लिया मैंने
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सुकून मिलता है, जब मुलाक़ात होती है,
वो ज़िन्दगी की, एक हसीन रात होती है !
चले जाते हैं वो छोड़ कर जब साथ मेरा,
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हम बदलते है तो निज़ाम बदल जाते है,
सारे मंजर,
सारे अंजाम बदल जाते है,
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दुनिया की
सारी दौलतें भी, हैं भला किस काम की,
अपनों के बिन ये शौहरतें भी, हैं भला किस काम की !
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अपनी "आदतों" के अनु
सार चलने में,
इतनी "गलतियां" नहीं होती....
जितनी दुनिया का ख्याल और लिहाज़…
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पूछूँगा विधाता से मैं, कि ये कैसा मुकद्दर बना दिया,
न बचा था ठौर कोई, जो आँखों को समंदर बना दिया !
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