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मैं कैसे भूल जाऊँ ये, वो कभी हमराज़ होते थे
वाह क्या बात थी उनमें, निराले अंदाज़ होते थे
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उनकी आँखों के इशारे, हम पढ़ नहीं सकते
दिल के ज़ज्बात, किसी से कह नहीं सकते
उनके दिल में जो भी हो पता नहीं
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हो जाएं दीदार
उनके, तो इनायत होगी
मेरे दर्द ए दिल में, कुछ तो राहत होगी
हर ख़ता की सज़ा कबूल कर लेंगे हम,
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ऐ #खुदा तूने एक पल खुशी का दिया तो होता,
कभी मेरे #सपनो को सच होने दिया तो होता...
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लेते हैं हर चीज़ मेरी, अपना सामान समझ कर,
जब मांगते हैं हम, तो देते है अहसान समझ कर !
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जाने क्यों लोग, किसी का दिल तोड़ देते हैं,
अपनों से नाता तोड़ के, गैरों से जोड़ लेते हैं !
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रह के भी साथ
उनके, न समझ पाए हम,
दिल की कालिखों को, न परख पाए हम !
भला क्या करें हम उस से गिला शिकवा,
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उनको तो हमारे, अहसानो वफ़ा याद नहीं !
हम मुज़रिम हैं
उनके, मगर दफ़ा याद नहीं !
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वो यूं ही ज़िंदगी भर, दिल दुखाते रहे,
वो हर तरह, मेरी मुश्किलें बढ़ाते रहे !
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भला मुर्दों के शहर में, ज़िन्दगी का असर क्या होगा,
बनावट के इन मेलों में, सादगी का असर क्या होगा !
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