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यारो आदमी को गुरूर में, जमीं नहीं दिखती !
किसी भी और की आँ
खों में, नमी नहीं दिखती !
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ख्यालों में मेरे कभी आप भी
खोये होंगे,
खुली आँ
खों से कभी आप भी सोये होंगे,
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अपनी जुबाँ की तासीर को, ज़रा समझ कर दे
खो
कैसे करती है घाव गहरे ये, ज़रा समझ कर दे
खोView Full
यूं ही बिना मतलब के, वो बात बोल देते हैं
खुद ब खुद अपना ही, वो राज़
खोल देते हैं
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अध्यापक – बच्चो, बहुवचन किसे कहते है?
संता — जब बहू ससुराल वालो को
खरी -
खोटी सुनाती है
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अगर पाना है कुछ, तो रोना जारी रखिये
अपने चेहरे पे, दिखावे की लाचारी रखिये
मक़सद हो जाये पूरा तो बदल लो चोला,
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अपनी ज़िन्दगी ने, कितने ही बवाल देखे हैं !
जो थे कभी अपने, उनके भी कमाल देखे हैं !
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दौर ए गर्दिश का असर, कब तक रहेगा
यूं ही उलझनों का सफर, कब तक रहेगा
कभी तो टूटेगा आदमी का हौसला यारो,
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वक़्त संभला, तो दुश्मन भी यार हो गए,
पर ख़ास अपनों के चेहरे, बेज़ार हो गए !
वो दोस्त हुआ करते थे कभी फाकों में,
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समय के साथ, खुद भी तो बदलना सी
खो,
दुनिया के ढांचे में, खुद भी तो ढलना सी
खो !
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