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कैसे हैं ये मौसम, जो सताने चले आते हैं,
फिर से #याद उनकी, दिलाने चले आते हैं !
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कान्धे पर लिये झोला जाने लगे बाजार
लाना था घर के लिए सब्जी भाजी अचार।
तभी श्रीमती जी आईं देख मुझे इठलाईं
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रह के भी साथ उनके, न समझ पाए हम,
दिल की कालिखों को, न परख पाए हम !
भला क्या करें हम उस से गिला शिकवा,
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कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
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गिर के फिर संभलने का, मज़ा ही कुछ और है ,
अपने पैरों से चलने का, मज़ा ही कुछ और है !
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मेरी ज़िन्दगी को तू, यूं ही परेशान मत कर,
मेरी शराफ़तों को तू, यूं ही बदनाम मत कर !
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हम तो क़तरों से खुश हैं, समंदर ले के क्या करेंगे,
जब भटकना है नसीब में, तो ठाँव ले के क्या करेंगे !
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दिल में हर राज़ दबा कर रखते है,
होंठों पर मुस्कराहट सजा कर रखते है...
ये
दुनिया सिर्फ़ खुशी में साथ देती है,
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जो सच है, उसे तुम छुपाते क्यों हो !
अगर झूठ है, तो इधर आते क्यों हो !
दिल से पूछ कर जवाब देना दोस्त,
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ख़ुशी न दे सको,तो रुलाओ मत यारो,
गुनाहों को अपने, छुपाओ मत यारो !
ये जो
दुनिया है सब जानती है दोस्त,
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