Shanti Swaroop Mishra

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Ajeeb Dunia Kyun Banai

तूने ऐ ख़ुदा, ये अजीब दुनिया क्यों बनाई,
#मोहब्बत बनाई, तो फिर नफ़रत क्यों बनाई !
जब तेरी ही तासीर है हर इंसान में ऐ रब,
तो फिर #दोस्ती बना के, दुश्मनी क्यों बनाई !
सुना है कि तू ही लिखता है मुकद्दर सभी के,
बस इतना बता दे कि, बदनसीबी क्यों बनाई !
जब तेरी ही औलाद है दुनिया का हर #इंसान,
तो फिर तूने, अमीरी और गरीबी क्यों बनाई !
जब तू ही समाया है हर तरफ हर ज़र्रे में रब,
फिर हर चीज़ तूने, अपनी परायी क्यों बनाई !
क्या मज़ा आता है तुझे दुनिया के इस खेल में,
बेइज़्ज़ती बनानी थी, फिर इज़्ज़त क्यों बनाई !
जब मौत ही है आखिरी मंज़िल हम सभी की,
तो फिर भटकने को तूने, ज़िन्दगी क्यों बनाई !

Gam Kam Nahi Hote

झूठी दिलासा से, गम कभी कम नहीं होते,
बाद मरने के भी, ये झंझट कम नहीं होते !
ज़रा रखिये खोल कर अपनी आँखे ज़नाब,
दुश्मनी करने में, अपने भी कम नहीं होते !
लफ़्ज़ों का कितना ही मरहम लगाए कोई,
पर दिल पे लगे ज़ख्म, कभी कम नहीं होते !
चरागों के बुझाने से भला क्या होगा दोस्त,
अंधेरों में छुप जाने से, गुनाह कम नहीं होते !
भले ही सारी ज़ागीर दे दो किसी को दोस्त,
मगर तब भी अरमान उसके, कम नहीं होते !

Dil mein mere kya hai

दर्द ए दिल मैं अपना, बताऊँ किस तरह,
मैं तराना ज़िंदगी का, सुनाऊँ किस तरह !
हो चुकी है जुबां बंद मेरी सदमों से यारो,
अफ़साने #ज़िंदगी के, मैं बताऊँ किस तरह !
देखना है तो देख लो आँखों में झांक कर,
अब दिल में मेरे क्या है, बताऊँ किस तरह !
ताउम्र मैं सहता रहा दुनिया के रंजो ग़म,
अब तक हूँ हाथ खाली, जताऊं किस तरह !
बहुत कांटे हैं अब भी इस #सफर में दोस्तो,
थक गया हूँ इतना, उन्हें हटाऊँ किस तरह ???

Sapne bunte reh gye

यारो हम तो सपने ही, बस बुनते रह गए ,
बस व्यर्थ की बातों में, सर धुनते रह गए !
लोग तो आसमाँ तक भी घूम आये मगर,
हम तो सिर्फ आसमाँ को, तकते रह गए !
#दोस्तों ने कर लीं पार जाने मंज़िलें कितनी,
मगर हम तो सिर्फ सोच में, घुलते रह गए !
#समंदर में उतर कर पा लिए लोगों ने रत्न,
और हम किनारे पे खड़े, हाथ मलते रह गए !
पस्त इस कदर हो गए हमारे हौसले दोस्तो,
कि ज़िन्दगी के खेल में, हम उलझते रह गए !!!

Imaan Ko Kya Huya

अमृत बता कर लोगों को, वो ज़हर बेच सकता है ,
अपनी जागीर बता कर, वो समंदर बेच सकता है !
उसकी नसों में खून बहता है मक्कारियां बन कर,
वो अपना ही बता कर, औरों का घर बेच सकता है !
न जाने क्या हुआ है इंसान के ईमान को दोस्तो,
कि अपने नाम से किसी का, वो हुनर बेच सकता है !
ज़माने में कोई तो गिर चुका है इतना दोस्तो, कि
ज़रा से ऐश की खातिर, वो हमसफ़र बेच सकता है !
रोग ए हवस ने अब घेर रखा है आदमी को दोस्त ,
ज़रा से नफ़े के लिए, अपनों का सर बेच सकता है !