Shanti Swaroop Mishra

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Apno Ka Sath Kaafi Hai

मन को भा जाए अगर, तो ज़रा सी बात काफी है,
ज़िन्दगी जीने के लिए, अपनों का साथ काफी है !
अपने ज़मीर को बचाए रखना आसान काम नहीं,
बदनाम के लिए तो बस, एक ख़ुराफ़ात काफी है !
मारने के लिए भला खंज़र की क्या ज़रुरत दोस्त,
जो दिल को भी चाक कर दे, बस वो बात काफी है !
क्यों टूट जाते हैं ज़िन्दगी भर के अटूट रिश्ते यूं ही,
जबकि बचाने के लिए बस, एक मुलाक़ात काफी है !
क्यों बनाए चले जाते हैं लोग महल सपनों के ,
जबकि असलियत के जज़्बे की, करामात काफी है !

Guzar Jati Hain Raatein

खुली आँखों में गुज़र जाती हैं, हमारी रातें अक्सर ,
आँखों में समायी रहती हैं, यादों की बारातें अक्सर !
कभी रास्ते कभी चौराहे तो कभी बरगद के नीचे,
उभर आती हैं ज़ेहन में, अनेकों मुलाक़ातें अक्सर !
कहाँ से चला और कहां आ गया वक़्त का कारवां,
पर यादों में चली आती हैं, जमाने की घातें अक्सर !
बचपन, जवानी और अब उम्र का ये पड़ाव अंतिम,
फिर भी हंसा देती हैं, बचपन की खुराफातें अक्सर !
ये सच है कि #ज़िन्दगी जीना भी एक हुनर है,
पर अफ़सोस किसी को भी, न भाती ये बातें अक्सर !

Kisi Pe Bharosa Na Karna

ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं ,
तमाशा देखने को, यहां इंसान बहुत हैं !
कोई भी नहीं बताता ठीक रास्ता यहां,
अजीब से इस शहर में, नादान बहुत हैं !
न करना भरोसा भूल कर भी किसी पे,
यहां हर गली में यारो, बेईमान बहुत हैं !
दौड़ते फिरते हैं न जाने क्या पाने को,
लगे रहते हैं जुगाड़ में, परेशान बहुत हैं !
ख़ुद ही बनाते हैं हम पेचीदा ज़िंदगी को,
वरना तो जीने के नुस्ख़े, आसान बहुत हैं !

Hum bhula na paye

उनका ख़याल दिल से, हम मिटा न पाए,
बहुत चाहा भूलना मगर, हम भुला न पाए !
उनकी जफ़ाओं का है याद हमें हर लम्हां,
मगर #मोहब्बत की शमा, हम बुझा न पाए !
उनके चेहरे की वो हंसी याद है अब तलक,
मगर अपना बुझा चेहरा, हम दिखा न पाए !
गर नसीब है ऐसा ही तो क्या दोष दें उनको,
दोष अपना है कि #रिश्ता, हम निभा न पाए !
बड़ा ही घमंड था दिलों को पढ़ने का हमें ,
मगर पता उनके दिल का, हम लगा न पाए !

Main Khamosh Hun

उमड़ते हैं तूफ़ान दिल में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ,
दर्द ही दर्द है ज़िन्दगी में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
किस किस को दिखाऊं मैं मुकद्दर का लिखा,
न चाहा किसी ने उम्र भर, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
न देखी कभी अपनों ने मेरे दर्द की वो इन्तिहाँ,
वो कर गए ज़ख़्मी ज़िगर, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
मान कर चलता रहा मैं जिगर का टुकड़ा जिसे,
उसने बेच दी इज़्ज़त मेरी, फिर भी मैं खामोश हूँ !
चाही थी जीनी ज़िन्दगी #मोहब्बत के सहारे,
नफ़रत का अँधेरा छा गया, फिर भी मैं खामोश हूँ !