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गर सताएं उनकी यादें, तो क्या करूँ,
गर चाहूँ उनसे मिलना, तो क्या करूँ!
हो सकती है मुलाक़ात ख्वाबों में बस,
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आता है बुरा वक़्त, तो उजाले भी डराने लगते हैं ,
यारो चूहे भी शेर को, अपना दम दिखाने लगते हैं !
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न बचा है कोई
ग़म, मुझे अब रुलाने के लिए ,
मान गया है दिल भी, सब कुछ भुलाने के लिए !
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यूं ही यादों का कारवां गुज़रता रहेगा,
सूरज भी रोज़ डूबता निकलता रहेगा !
फासलों से मोहब्बत नहीं मिटा करती,
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ऐ ज़िन्दगी मत पूछ, कि कितना करम बाक़ी है,
कितने तूफ़ान आने हैं, और कितना
ग़म बाक़ी है !
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बदले नहीं हैं हम, यूं ही उलझे हुए से हैं ,
ज़माने की चाल में, कुछ अटके हुए से हैं !
न समझो कि न रहे हम पहले की तरह,
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मेहरवानी अय वक़्त, तूने रहना सिखा दिया ,
दुनिया के सारे
ग़म, तूने सहना सिखा दिया !
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जाने कितने ख्वाबों को, मैंने बिखरते देखा है,
ज़िन्दगी की सरगम को, मैंने बिगड़ते देखा है!
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आया बुरा वक़्त, तो अपनों ने साथ छोड़ा,
आयी जब रात, तो ख्वाबों ने साथ छोड़ा !
वादा किया था ताउम्र साथ देने का उसने,
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हम तो बस अपनों की दगा से डरते हैं,
तूफ़ान झेल कर भी हवा से डरते हैं !
दुश्मनों से कोई शिकवा गिला नहीं,
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