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क्या कहूँ उन #लोगों को, जिन्होंने मेरा #साथ छोड़ दिया,
क्यूँ छोटी सी #बात पर उन्होंने, मेरा #हाथ छोड़ दिया...
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किसी को #आज़माने में, कितना #वक़्त लगता है..
उल्फ़त भरी #जिन्दगी जीनी पड़ती है,
#मौत को आने में कितना वक़्त #लगता है ?
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कभी रिश्ते बनाने में
उम्र गुज़र जाती है
कभी रिश्ते निभाने में
उम्र गुज़र जाती है
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मेरी #मौत पर, आंसू बहाने मत आना
लोगों को झूठा ग़म, दिखाने मत आना
उम्र भर तरसते रहे जिस अपनेपन को,
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कितना ही दिल बहलाएं मगर, दर्द कम नहीं होते
कितने ही आंसू बहाएं मगर, ये गम कम नहीं होते
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हमसे नफरतों का बोझ अब सहा नहीं जाता
हमसे अपनों के फरेबों में अब रहा नहीं जाता
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ना पूछिये कि ये ज़िन्दगी कैसे गुज़री
हमारी वो सहर ओ शाम कैसे गुज़री
मुद्दत गुज़र गयी यूं डूबते उछलते
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आरज़ू थी मेरे दिल की, कि कोई न मुझसे रूठे !
इस ज़िन्दगी में अपनों का, कभी न साथ छूटे!
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हमें तो हर कदम पर, ग़मों का ज़हर पीना पड़ा है
जीने की चाहत है मगर, घुट घुट कर जीना पड़ा है
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इस #दिल में, मोहब्बत की शमा जलती रही ,
यादों का बोझ लिए, ये ज़िन्दगी चलती रही !
आता रहा जलजला ज़माने भर का लेकिन,
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