दिल के शोलों की जलन, हमसे पूछो,
कैसी है कांटो की चुभन, हमसे पूछो,
हो चुका है ख़त्म दौर-ए-शराफत अब,
दोरंगी दुनिया का चलन, हमसे पूछो,
न समझो माली को बगीचे का मालिक,
अब कैसे उजड़ते हैं चमन, हमसे पूछो,
आज़ाद #ज़िंदगी जीना तो सपना है अब,
कैसे होता है उसका दमन, हमसे पूछो,
न उठाये फिरिये ग़मों का पहाड़ "मिश्र",
इसमें होता है कितना वजन, हमसे पूछो !!!
हम तो बस अपनों की दगा से डरते हैं,
तूफ़ान झेल कर भी हवा से डरते हैं !
दुश्मनों से कोई शिकवा गिला नहीं,
मगर हम #दोस्तों की ज़फ़ा से डरते हैं !
नफरतों का कोई भी डर नहीं हमको,
मगर हम #मोहब्बत की सजा से डरते हैं !
बहुत रंग देखे हैं इस जमाने के हमने,
हम ज़हर से नहीं बस दवा से डरते हैं !
हमें ग़म नहीं इस दुनिया के सितम का,
हम तो बस अपनी ही खता से डरते हैं !!!
कैसी सजा है ये #ज़िन्दगी, ये हमसे न पूँछिये ,
कैसे गुज़रते हैं ये रात दिन, हमसे न पूँछिये !
बामुश्किल भूल पाए हैं गुज़रे जमाने को हम,
कैसे बिखरती है ख्वाहिशें, ये हमसे न पूँछिये !
जिन्हें रास आया हे जीना उन्हें दुआ है हमारी,
मगर मरते हैं कैसे घुट घुट के, हमसे न पूँछिये !
रोशन हैं घर जिनके मुबारक हो रौशनी उन्हें,
मगर कैसे पसरते हैं सन्नाटे, ये हमसे न पूँछिये !
खुश रहें इस दुनिया के लोग तमन्ना है हमारी,
पर आंसुओं की कीमत है क्या, हमसे न पूँछिये ! #ज़िन्दगी उलझन के सिवा कुछ भी नहीं दोस्त,
लोग कैसे कुचलते हैं अरमां, ये हमसे न पूँछिये !!!
दूर से तो हर चेहरा, सुन्दर नज़र आता है,
क़रीब से खोटों का, समंदर नज़र आता है !
बनायें तो कैसे बनायें शीशे का ताज महल,
इधर तो हर हाथ में ही, पत्थर नज़र आता है !
ये सफ़र #ज़िन्दगी का इतना भी नहीं आसां,
हर कदम पर इसके, वबंडर नज़र आता है !
चेहरों का नूर भी अब दिखावा सा लगता है,
यारो असली तमाशा तो, अंदर नज़र आता है !
किस तरह बदली है ज़माने की फ़िज़ां दोस्तो,
इधर तो हर आदमी, कलंदर नज़र आता है !!!
हम ज़फाओं में बस उसकी, वफ़ा खोजते रहे,
हम तो शोलों में शबनम का, मज़ा खोजते रहे !
लोग पी कर भूल जाते हैं, अपना भी घर मगर,
हम तो नशे में भी उसका ही, पता खोजते रहे !
न छोड़ा कोई भी दाव उसने, गिराने का हमको,
मगर हम तो उसकी चालों में, अदा खोजते रहे !
इस कदर बदल जाने का, न मिला सबब हमको,
मगर रात दिन हम तो अपनी, ख़ता खोजते रहे !
निकाल फेंका दिल से हमें, कूड़ा समझ के,
पर हम थे कि उसमें भी यारो, नफ़ा खोजते रहे !