अब झूठी वफ़ा जताने से, भला क्या फायदा, #मोहब्बत के हलफ़नामे, से भला क्या फायदा !
कहोगे कि जकड़े थे ज़माने कि मज़बूरियों में,
अब तो किसी भी बहाने से, भला क्या फायदा !
ज़ख्मों में #दर्द है तो होने दो तुम्हें क्या ज़ालिम,
अब यूं दर्द की दवा देने से, भला क्या फायदा !
जल चुकी है अब तो दीये की बाती भी यारो,
अब उसमें तेल बढ़ा देने से, भला क्या फायदा !
वक़्त के साथ न चले तो कैसी #ज़िंदगी दोस्त ,
अब यूं व्यर्थ में हाथ मलने से, भला क्या फायदा !!!
जब कभी बादल, मेरे आँगन पे गरजते हैं,
तब तब उनकी यादों के, साये लरजते हैं !
कैसे भुलाएं वो #मोहब्बत के हसीन लम्हें,
उनके सहारे तो, सुबह ओ शाम गुज़रते हैं !
वो तो पूंछते हैं #नफ़रत से हमारा रिश्ता,
हम हैं कि इसे उनका, अंदाज़ समझते हैं !
कोई कैसे भूल सकता है अपने वादे इरादे,
पर अफ़सोस, जुबां से लोग कैसे पलटते हैं !
यही #ज़िन्दगी है दोस्त अफ़सोस मत करिये,
इधर तो ऐसे ही, हर पल नज़ारे बदलते हैं !!!
न दिन को चैन, न रातों को आराम आता है,
है पाया #नसीब ऐसा, कि दर्द बेलगाम आता है !
न रहा कुछ बाक़ी इस बुत से शरीर में दोस्त, #दिल को तो याद उनका, बस इल्ज़ाम आता है !
बरसती हैं सावन की घटायें हो कर आँखों से,
अब हर हवा का झोखा, दर्द का पैगाम लाता है !
अगर जीना है #ज़िन्दगी तो दर्द को भूलो दोस्त ,
यूं ही घुट घुट के जीना, मुश्किलें तमाम लाता है !!!
झूठी दिलासा से, गम कभी कम नहीं होते,
बाद मरने के भी, ये झंझट कम नहीं होते !
ज़रा रखिये खोल कर अपनी आँखे ज़नाब,
दुश्मनी करने में, अपने भी कम नहीं होते !
लफ़्ज़ों का कितना ही मरहम लगाए कोई,
पर दिल पे लगे ज़ख्म, कभी कम नहीं होते !
चरागों के बुझाने से भला क्या होगा दोस्त,
अंधेरों में छुप जाने से, गुनाह कम नहीं होते !
भले ही सारी ज़ागीर दे दो किसी को दोस्त,
मगर तब भी अरमान उसके, कम नहीं होते !
दर्द ए दिल मैं अपना, बताऊँ किस तरह,
मैं तराना ज़िंदगी का, सुनाऊँ किस तरह !
हो चुकी है जुबां बंद मेरी सदमों से यारो,
अफ़साने #ज़िंदगी के, मैं बताऊँ किस तरह !
देखना है तो देख लो आँखों में झांक कर,
अब दिल में मेरे क्या है, बताऊँ किस तरह !
ताउम्र मैं सहता रहा दुनिया के रंजो ग़म,
अब तक हूँ हाथ खाली, जताऊं किस तरह !
बहुत कांटे हैं अब भी इस #सफर में दोस्तो,
थक गया हूँ इतना, उन्हें हटाऊँ किस तरह ???