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Foolon Ki Daastan

मैं फूलों की दास्ताँ, काँटों की जुबानी लिखता हूँ
ख़िज़ाँ की जुबाँ से, गुलशन की कहानी लिखता हूँ

तितलियों के मन में क्या है, भला हमको क्या पता
मैं तो थिरकनें उनकी, रंगों की जुबानी लिखता हूँ

डालियों में है कितना दम, ये तो दरख़्त जानता है
मैं पत्तों का छटपटाना, हवा की जुबानी लिखता हूँ

भले ही खुशबुओं से तर है, उपवन का हर कोना,
मैं परागों की कहानी, भोंरों की जुबानी लिखता हूँ

है बागों की बहारों से, मेरा पुराना सा रिश्ता यारो
मैं कोकिल की कूँज से, बागों की रवानी लिखता हूँ

होंगे बहुत खुश, पखेरुओं को बसेरा दे कर विटप
मैं तो खगों की दास्ताँ, नीड़ों की जुबानी लिखता हूँ

"मिश्र" होता है बहुत खुश, चमन को देख के बागवां,
मैं उसका खाद पानी, फ़िज़ाँ की जुबानी लिखता हूँ

Corona ne wafadar bana diya

यारो कोरोना ने सब को, वफ़ादार बना दिया
रिश्तों की भारी घुटन को, हवादार बना दिया

कुछ दिन तो याद आया ऑफिस भी ज़रूर,
पर इस आफ़त ने फिर से, घरवार बना दिया

छोड़ दी दोस्ती यारी मगर फोन का क्या करें,
हमें अपनों ने पूंछ पूंछ कर, बीमार बना दिया

जाने किसने उड़ा दिया कि नासाज़ है तबियत,
अपनों ने झूठी खबर को, अखबार बना दिया

यारो सच तो ये है कि होते हैं अपने, अपने ही,
फिर से गुज़रे फ़सानों को, नमूदार बना दिया

नंगी तलवार तो टंगी है हर किसी के सर पर,
मगर सब को ही साहस का, सरदार बना दिया

आयी है आफ़त तो एक दिन जाएगी भी"मिश्र",
मगर कुदरत ने सब को, ख़बरदार बना दिया

Majboori par hansa mat karo

किसी की मजबूरियों पर, हंसा मत करिये
यूं बेसबब झूठे गरूर का, नशा मत करिये

कुछ भी पता नहीं इस वक़्त की नज़रों का,
खुद को ख़ुदा समझने की, खता मत करिये

बदवक़्त कभी कह कर नहीं आता है दोस्त,
कभी खुद के बुने जालों में, फंसा मत करिये

जिसने बिठाया था जमीं से फलक पर तुम्हें,
उन्हें बन के कभी विषधर, डसा मर करिये

ज़रुरत है उल्फत की जिस बीमार दिल को,
कभी नफ़रतों से उसकी, शिफ़ा मत करिये

अजब सी दुनिया में अजब से रिश्ते हैं "मिश्र",
कभी अपनों की बात पर, गिला मत करिये

Main Khamosh Hun Lekin

मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ !
लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ !

न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका,
मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ !

मैं उडता हूँ आसमानों में बस बेख़ौफ़ हो कर,
मगर जमीं नीचे है, मैं इसका गुमां रखता हूँ !

कोई बाहर के अंधेरों से क्या डरायेगा मुझको,
मैं तो वास्ते रौशनी के, दिल में शमा रखता हूँ !

ज़िन्दगी के खेल में कल हों न हों ये क्या पता,
पर जीतने की ख्वाहिशें, मैं खामखाँ रखता हूँ !

Kitna Matlabi Hai Zamana

कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख
कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख

न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त,
आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख

भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब,
कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख

क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना,
कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख

शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल,
हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख

जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त,
कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख

तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है "मिश्र",
कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख


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